देश में बहुत अधिक सार्वजनिक छुट्टी हैं और उन्हें बढ़ाने के बजाय कम करने का समय आ गया है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने ये टिप्पणी दादरा और नगर हवेली में 2 अगस्त को सार्वजनिक छुट्टी में शामिल न किए जाने वाली याचिका को खारिज करते हुए की। दादर नागर हवेली के एक निवासी ने सार्वजनिक छुट्टी न दिए जाने को लेकर हाई कोर्ट में याचिका डाली थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि इस दिन केंद्र शासित प्रदेश में छुट्टी हुआ करती थी क्योंकि इस दिन हमे पुर्तगाली शासन से मुक्त मिली थी, इसे 2020 तक मनाया जा रहा था लेकिन 2021 से बंद कर दिया गया है।
पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए यह भी कहा कि “सार्वजनिक छुट्टी के लिए कोई कानूनी रूप से लागू करने योग्य मौलिक अधिकार नहीं है और किसी विशेष दिन को सार्वजनिक छुट्टी या वैकल्पिक अवकाश घोषित करना सरकार की नीति का मामला है।” न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने किशनभाई घुटिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि 2 अगस्त 1954 को केंद्र शासित प्रदेश को पुर्तगालियों से मुक्ति मिली थी, तब से ये दिन मनाया जा रहा है लेकिन 29 जुलाई, 2021 से इसे बंद कर दिया गया था।
हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि यदि देश के स्वतंत्रता दिवस को चिह्नित करने के लिए 15 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया था, तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि 2 अगस्त को दादरा और नगर हवेली के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं किया जाना चाहिए। अधिवक्ताओं ने केंद्र शासित प्रदेश से संबंधित हाई कोर्ट की एक अन्य पीठ के 15 अप्रैल 2019 के आदेश का भी उल्लेख किया, जिसमें ‘गुड फ्राइडे’ को प्रतिबंधित (वैकल्पिक) छुट्टी के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन राजपत्रित छुट्टी नहीं।
हाई कोर्ट में सवाल किया गया कि सरकार को गुड फ्राइडे को राजपत्रित अवकाश घोषित करने का निर्देश दिया था क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश की आबादी में ईसाई शामिल थे। हालांकि तब सरकार ने तर्क दिया था कि चूंकि क्रिसमस और इसी तरह की छुट्टियों को व्यापक रूप से मनाया जाता है, इसने गुड फ्राइडे की छुट्टी को वैकल्पिक रखा। अधिवक्ताओं की ओर से सवाल किया गया कि सरकार 15 अगस्त और 26 जनवरी को सार्वजनिक अवकाश के रूप में मना सकती है, लेकिन क्या वह दादर नागर हवेली के लोगों को 2 अगस्त का दिन (उनका मुक्ति / स्वतंत्रता दिवस) मनाने से रोकेगी?
तमाम दलीलों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, “यह आदेश वर्तमान मामले से अलग स्तर पर है। वह जनहित याचिका राजपत्र में विफलता के बारे में थी यानी इसे वैकल्पिक रखने के बजाय अनिवार्य, सार्वजनिक अवकाश बनाने के बारे में थी। किसी विशेष दिन को सार्वजनिक अवकाश या वैकल्पिक अवकाश घोषित करना या न करना सरकार की नीति का विषय है। ये कोई कानूनी रूप से लागू करने अधिकार नहीं है जिसे उल्लंघन कहा जा सकता है। किसी को भी सार्वजनिक अवकाश का मौलिक अधिकार नहीं है।”