मायागंज अस्पताल के शिशु विभाग के पूर्व एचओडी प्राे. आरके सिन्हा ने कहा है कि पहले प्रसव के दाैरान अगर नवजात के जन्म में 18 घंटे से ज्यादा की देर हुई ताे मिर्गी की आशंका बढ़ जाती है। जबकि दूसरे बच्चे के प्रसव में 12 घंटे से ज्यादा की देरी होने पर या दर्द रहने के बाद भी डिलीवरी न हाे ताे यह बीमारी हाे सकती है। बच्चाें में मिर्गी की बीमारी का दाैरा पहली बार पड़ने पर छह घंटे के अंदर अगर विशेषज्ञ डाॅक्टर से इलाज हाे जाए ताे उसकी जान बचने की संभावना 100 प्रतिशत बढ़ जाती है।
छह घंटे के बाद ब्रेन डैमेज हाेने लगता है जबकि दाे घंटे तक लगातार मिर्गी का अटैक जारी रहे ताे 28 प्रतिशत बच्चाें की माैत हाे जाती है। वहीं 24 घंटे तक एेसे दाैरे पड़ने पर 50 प्रतिशत बच्चों की माैत हाे जाती है। यह बातें उन्हाेंने कटिहार में एक सम्मेलन के दाैरान कहीं।यह बीमारी मुख्य रूप से एक साल से कम उम्र के बच्चाें में हाेती है, लेकिन ग्रामीण इलाकाें में लाेग झाड़-फूंक व अंधविश्वास के चक्कर में रह जाते हैं। इस बीच स्वत: बच्चा ठीक भी हाे गया ताे झाड़-फूंक काे लेकर ही लाेग भराेसा कर बैठते हैं और बाद में इलाज नहीं हाेने से यह बार-बार हाेते रहता है।
अगर मिर्गी के दाैरान बच्चे काे चमकी आ जाए ताे जितनी बार यह आएगा, उतनी ही बार ब्रेन डैमेज हाेगा। ऐसे बच्चे ठीक हाेने के बाद भी उसका ब्रेन कमजाेर हाे जाएगा और वह ठीक से बाेल नहीं पाएगा। काेई काम सामान्य बच्चाें की तरह नहीं कर पाएगा ताे उसका नाैकरी करना या राेजगार का सृजन कर पाना भी मुश्किल हाेगा। यानी वह जीवित रहकर भी सामान्य जिंदगी नहीं जी पाएगा।
मिर्गी हाेने के ये 5 प्रमुख कारण हैं
प्रसव वेदना 12 से 18 घंटे तक लगातार रहने के बाद भी डिलीवरी न हाेना
जन्म के 10 मिनट बाद तक नवजात अगर एक बार भी नहीं राेया हाे
गंभीर जाैंडिस हाेने व मां का खून निगेटिव व नवजात का पाॅजिटिव हाेने पर
जन्मजात गड़बड़ी हाेने पर मिर्गी की बीमारी का पता लगने के बाद इलाज न हाेना
ब्रेन में किसी तरह का संक्रमण हाे और समय से डाॅक्टर पहचान कर पाए हों