**रेलवे की लापरवाही पर उठे सवाल, पर्यावरण प्रेमियों ने की उच्चस्तरीय जांच की मांग**

 

भागलपुर। पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता की रक्षा के तमाम दावों के बीच भागलपुर जिले के नवगछिया रेलवे परिसर से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। शनिवार को प्लेटफॉर्म संख्या-1 पर स्थित पाखड़ का एक विशाल पेड़ रेलवे द्वारा काट दिया गया। यह वही पेड़ था जिस पर वर्षों से *लिटिल कॉर्मोरेंट* और *लिटिल एग्रेट* प्रजाति के पक्षियों का विशाल कॉलोनीनुमा घोंसला मौजूद था। पेड़ गिराए जाने के बाद सैकड़ों नन्हे चूज़े नीचे जमीन पर आ गिरे। अधिकांश चूज़ों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि कई घायल अवस्था में तड़पते रहे। यह दृश्य इतना भयावह था कि स्टेशन पर मौजूद लोग स्तब्ध रह गए।

 

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पेड़ को काटने से पहले रेलवे प्रशासन ने न तो वन विभाग को कोई औपचारिक सूचना दी और न ही पर्यावरणीय नियमों का पालन किया। यही कारण है कि बड़ी संख्या में मासूम पक्षियों की असमय मौत हो गई। लोगों ने इसे केवल एक पेड़ काटने की घटना नहीं, बल्कि प्रकृति की हत्या करार दिया है।

 

सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि घटना स्थल पर मौजूद रेलवे कर्मियों और वन विभाग की टीम ने न केवल लापरवाही दिखाई बल्कि मौके पर पहुंचे पर्यावरण प्रेमियों और पत्रकारों को धमकाने का भी प्रयास किया। इस रवैये ने लोगों में गहरा आक्रोश पैदा कर दिया।

 

सूचना मिलते ही भागलपुर के डीएफओ को मामले की जानकारी दी गई। इसके बाद वन विभाग के रेंज ऑफिसर मौके पर पहुंचे और सभी बचे हुए चूज़ों को रेस्क्यू कर नवगछिया के सुंदरवन ले जाया गया। वन विभाग की इस तत्परता से कुछ चूज़ों की जान बचाई जा सकी, लेकिन तब तक सैकड़ों मासूम पक्षी काल के गाल में समा चुके थे।

 

पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि यह घटना न केवल रेलवे की असंवेदनशीलता और गैर-जिम्मेदारी को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि विकास कार्यों की आड़ में प्रकृति की कितनी बड़ी अनदेखी की जा रही है। जहां एक ओर सरकार पक्षियों और जैव विविधता की रक्षा के लिए करोड़ों रुपये खर्च करती है, वहीं दूसरी ओर रेलवे जैसी बड़ी संस्था की लापरवाही से पूरा पक्षी आवास ही खत्म हो गया।

 

स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया है कि क्या रेलवे विभाग पर्यावरणीय नियमों से ऊपर है? जब भी किसी विकास परियोजना या निर्माण कार्य के दौरान पेड़ काटने की बात आती है तो उसके लिए वन विभाग की अनुमति आवश्यक होती है। ऐसे में रेलवे ने यह कदम बिना समुचित प्रक्रिया के कैसे उठा लिया?

 

ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि इस घटना की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई अनिवार्य है। उनका कहना है कि यदि समय रहते वन विभाग हस्तक्षेप नहीं करता तो शायद एक भी चूज़ा जीवित नहीं बच पाता।

 

यह घटना हमें यह सिखाती है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन जरूरी है। यदि हम प्रकृति की अनदेखी करेंगे तो इसकी कीमत आने वाली पीढ़ियों को चुकानी होगी। नवगछिया रेलवे परिसर में सैकड़ों मासूम पक्षियों की असमय मौत ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। यह केवल पक्षियों का नरसंहार नहीं बल्कि हमारे समाज और प्रशासन की संवेदनहीनता का आईना है।

 

 

By admin

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