बिहार जैसे सामाजिक-राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में मानव तस्करी अब केवल कानून-व्यवस्था की चुनौती नहीं रही, बल्कि यह एक ऐसी *मानवीय त्रासदी* बन चुकी है, जो हर उस नागरिक को शर्मसार कर देती है, जो अपनी आंखें बंद किए बैठा है।
**महिलाओं का नरकीय जीवन: एक दर्दनाक सच्चाई**
पुलिस ऑपरेशन में मुक्त कराई गईं युवतियों की आपबीती रोंगटे खड़े कर देने वाली है। “दो साल से रोज मेरे साथ हैवानियत होती थी…”—यह बयान केवल एक पीड़िता की कहानी नहीं, बल्कि हजारों उन लड़कियों की चीख है, जिन्हें झूठे वादों से बहलाकर नरक में धकेल दिया गया।
**एक दिन में 15-16 ग्राहक**—यह आंकड़ा नहीं, बल्कि उस अमानवीय शोषण का प्रतीक है, जिसमें एक युवती को *इंसान नहीं, वस्तु* समझा गया।
#### **तस्करी का जाल: घर से लेकर बॉर्डर तक फैला है**
तस्करी के इस नेटवर्क की शुरुआत अक्सर घर की किसी नाराजगी या गरीबी से होती है, लेकिन अंत सीमा पार चीन या नेपाल के साइबर अपराध नेटवर्क में होता है। डीजीपी विनय कुमार ने इस नए खतरे को रेखांकित करते हुए कहा कि अब तस्करी केवल शारीरिक शोषण तक सीमित नहीं, बल्कि *राष्ट्रीय सुरक्षा* का मसला बन चुका है।
#### **पुरुष भी नहीं बचे: बंधुआ मजदूरी का क्रूर सच**
ऐसा नहीं है कि पीड़ा केवल महिलाओं तक सीमित है। ईंट-भट्ठों पर *बंधुआ मजदूर* बनाकर रखे गए युवकों की कहानी बताती है कि यह शोषण हर वर्ग, हर उम्र, हर लिंग को प्रभावित कर रहा है। “भागने पर करंट दौड़ाया जाता था…”—यह बयान एक ऐसी व्यवस्था की पोल खोलता है, जिसमें इंसान की कोई कीमत नहीं बची।
#### **क्यों फेल हो रही है व्यवस्था?**
डीजीपी ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि *मानव तस्करी जैसी गंभीर समस्या हमारी प्राथमिकता में नहीं है*। यही सबसे बड़ी विडंबना है। एक तरफ तस्कर अरबों की कमाई कर रहे हैं, दूसरी ओर पुलिस तंत्र संसाधनों, इच्छाशक्ति और पारदर्शिता के अभाव में जूझ रहा है।
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### **समाधान क्या है?**
1. **स्थानीय निगरानी और सतर्कता समितियां** बनानी होंगी, जो हर रेलवे स्टेशन, बस अड्डा और हॉटस्पॉट पर तैनात हों।
2. **पुनर्वास योजनाओं** को केवल कागज पर नहीं, ज़मीन पर लागू करना होगा।
3. **तस्करों को पकड़ने से ज्यादा जरूरी** है उस नेटवर्क को ध्वस्त करना, जो पीड़ितों की खरीद-फरोख्त को संभव बनाता है।
4. **सीमावर्ती निगरानी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग** को प्राथमिकता देनी होगी—चीन और नेपाल से जुड़ी कड़ियों को रोकना आवश्यक है।
बिहार में मानव तस्करी अब एक *मानवाधिकार संकट* है। यदि आज भी हमने इसे सिर्फ “महिला अपराध” मानकर नजरअंदाज किया, तो कल यह हमारी *राष्ट्र की आत्मा* को खोखला कर देगा। समय आ गया है कि समाज, सरकार और हर नागरिक मिलकर इस भयावह व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाए—क्योंकि चुप रहना अब अपराध के बराबर है।
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