भागलपुर में 10 सालों में 73 बार भगवान की मूर्तियां चोरी हुई हैं। लेकिन इससे भी अनोखा मामला 32 साल पहले 1988 का संज्ञान में आया है। तब से लेकर आज तक भगवान थाने में हैं और उन्हें चुराने वाले साक्ष्यों के अभाव के चलते रिहा हो गए।

भागलपुर : जिले के तातारपुर थाना क्षेत्र के लहेरी टोला स्थित टोडरमल दिलखुश राय दल्लू बाबू धर्मशाला में स्थापित भगवान राधा-कृष्ण और सत्यनारायण की चार मूर्तियों को 26 अप्रैल 1988 की रात चोरों ने चुरा ली थी। केस दर्ज हुआ। मामला हाइप्रोफाइल चोरी का था। मूर्तियां करोड़ों मूल्य की थी। चोर गिरफ्तार कर लिये गए। मूर्तियां भी पुलिस ने बरामद कर ली गई। केस का ट्रायल चला और अदालत में साक्ष्य के अभाव में चोर रिहा हो गए। केस की फाइल भी बंद हो गई पर चोरों के पास से बरामद भगवान राधा-कृष्ण और सत्यनारायण की मूर्तियां 30 साल से कोतवाली थाने के मालखाना में कैद है।

वर्षों से कोतवाली थाने की हिरासत में कैद भगवान की रिहाई कराने वाले तब से दौड़ लगा रहे हैं। इस बीच कोतवाली थाने से दो दर्जन थानेदार बदल गए लेकिन अगर कुछ नहीं हुआ तो वह मालखाने में कैद भगवान की रिहाई नहीं हुई। चोरी की वारदात की बाबत तब ट्रस्ट से जुड़े वकील मोहरी लाल सिंघानियां ने कोतवाली-तातारपुर थाना कांड संख्या 227-88 दर्ज कराई थी। पुलिस सक्रिय हुई, आरोपित गिरफ्तार कर लिये गए थे। बरामद मूर्तियों की पहचान भी ट्रस्ट से जुड़े पदाधिकारियों ने कर ली थी। सभी मूर्तियों के तल में धर्मशाला का नाम खुदा हुआ था। पुलिस ने तब लहेरी टोला निवासी राजू पासवान, शाहाबाद पीरपैंती निवासी आनंदी गोस्वामी, रामसर निवासी बबलू मंडल और शाहकुंड के करहरिया निवासी महेश झा को पुलिस ने गिरफ्तार किया था।

साल बदलते गए, लेकिन नहीं आजाद हुए भगवान

न्यायालय में ट्रायल चला, जिसमें आनंदी गोस्वामी के अनुपस्थित रहने के कारण फरार घोषित कर दिया गया। दूसरे आरोपित राजू पासवान की रिहाई आठ दिसंबर 1997 को हो गई। उसके बाद फाइल भी बंद हो गई। अगर किसी बात का फैसला अटका रहा तो वह भगवान की उन चारों मूर्तियों की मुक्ति का रहा। हालांकि तब तत्कालीन कोतवाली इंस्पेक्टर ने 29 मई 1990 को अपने मेमो संख्या 861-90 के माध्यम से मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में अर्जी देकर यह अनुरोध किया था कि मूर्ति बरामद हो गई है, उसे कोतवाली थाने के मालखाना में रखा गया है। धार्मिक दृष्टिकोण से वर्णित मूर्तियों को मालखाने में रखने को तत्कालीन कोतवाली इंस्पेक्टर ने अपने अर्जी में उचित नहीं बताया था। तब कोतवाली इंस्पेक्टर ने यह भी अर्जी में लिखा था कि न्यायालय आदेश दे तो आवेदक को उन्हें मूर्तियों को सौंपने में कोई आपत्ति नहीं होगी। बावजूद इसके अबतक मूर्तियां मालखाने में कैद हैं।

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