भागलपुर के दो परिवारों के लिए बीते छह साल किसी सजा से कम नहीं थे। हर सुबह एक उम्मीद के साथ शुरू होती थी और हर रात उसी सवाल पर खत्म होती—क्या कभी सच सामने आएगा? पोक्सो जैसे गंभीर आरोपों में उम्रकैद की सजा काट रहे ननकु मंडल और बंटी कुमार यादव के लिए वह दिन आखिरकार 9 दिसंबर को आया, जब पटना हाई कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया।

 

न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद और न्यायमूर्ति सौरवेंद्र पाण्डेय की खंडपीठ ने सिविल कोर्ट, भागलपुर के फैसले को पलटते हुए साफ कहा कि अभियोजन पक्ष अपने आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है। कोर्ट ने दोनों की उम्रकैद की सजा रद्द करते हुए तत्काल रिहाई का आदेश दिया। इसके बाद 13 दिसंबर को ननकु मंडल और बंटी कुमार यादव को भागलपुर के शहीद जुब्बा साहनी केंद्रीय कारा से आज़ादी मिली।

 

इस ऐतिहासिक फैसले की नींव उस सच्चाई पर टिकी थी, जिसे वर्षों से दबाया गया था। अपीलकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक कुमार सिन्हा ने अदालत के सामने केस की परत-दर-परत सच्चाई उजागर की। पीड़िता के बयान एफआईआर, धारा 161 और 164 सीआरपीसी तथा अदालत में दी गई गवाही—चारों में गंभीर विरोधाभास पाए गए। मेडिकल रिपोर्ट में भी बलात्कार की पुष्टि नहीं हो सकी। इसके साथ ही पुलिस जांच में कई प्रक्रियागत खामियां सामने आईं। अदालत के समक्ष यह तथ्य भी आया कि मामला कथित रूप से किसी दोस्त को बचाने के उद्देश्य से गढ़ा गया था। इन सभी बिंदुओं ने अभियोजन के पूरे मामले को कमजोर कर दिया।

 

बंटी कुमार यादव के लिए यह मामला केवल जेल की सजा नहीं, बल्कि पूरे परिवार पर टूटा एक बड़ा कहर था। सिंचाई विभाग में कार्यरत पिता की मौत के बाद घर की सारी जिम्मेदारी बंटी के कंधों पर थी। मां की आंखों से आंसू नहीं सूखते थे, क्योंकि वही घर का एकमात्र सहारा था। झूठे केस ने न सिर्फ उसकी आज़ादी छीनी, बल्कि परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति भी तोड़ दी।

 

ननकु मंडल की कहानी और भी ज्यादा दर्दनाक है। गिरफ्तारी के समय उनकी उम्र 45 साल थी और सबसे छोटी बेटी महज एक साल की थी। आज वही बेटी आठ साल की हो चुकी है। पत्नी बताती हैं कि तीन बेटियां और दो बेटे पिता के साए के बिना ही बड़े हुए। समाज के ताने, आर्थिक तंगी और मानसिक पीड़ा के बीच परिवार ने किसी तरह छह साल गुजारे।

 

पटना हाई कोर्ट का यह फैसला केवल दो लोगों की रिहाई नहीं है, बल्कि उन तमाम परिवारों के लिए एक उम्मीद है, जो झूठे आरोपों के अंधेरे में सच की रोशनी का इंतज़ार कर रहे हैं।

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