भागलपुर जिले में एशिया के एकमात्र गंगा डॉल्फिन अभयारण्य स्थित है, जो सुलतानगंज के जहांगीरा से कहलगांव के बट्टेश्वर तक फैला हुआ है। करीब 60 किलोमीटर तक इस क्षेत्र में गंगा डॉल्फिन पाई जाती हैं। आम लोग सूर्योदय और सूर्यास्त के समय नदी में खेलती डॉल्फिन का दीदार कर सकते हैं।
5 अक्टूबर को विश्व डॉल्फिन दिवस मनाया जाता है, लेकिन इसके बावजूद आज भी लोग डॉल्फिन का शिकार करते हैं। नदी में लगे जाल में फंसकर कई डॉल्फिन अपनी जान गंवा रही हैं। वन विभाग के रेंजरों के अनुसार, अभयारण्य में लगभग 250 डॉल्फिन हैं। लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए बिहार सरकार लगातार अभियान चला रही है। स्थानीय लोग डॉल्फिन को “सोंस” के नाम से जानते हैं, जबकि वन विभाग ने इसे “मुस्कान” नाम दिया है। इसका कारण यह है कि जब डॉल्फिन लहरों को चीरते हुए बाहर आती है, तो उसके चेहरे पर मुस्कान जैसी अभिव्यक्ति दिखती है।
पर्यावरण कार्यकर्ता दीपक कुमार का कहना है कि डॉल्फिन संरक्षण एक चुनौती है। जाल में फंसकर साल में दो से तीन डॉल्फिन दम तोड़ देती हैं। हालांकि धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ रही है। लेकिन भागलपुर के बरारी घाट और विक्रमशिला सेतु के बगल में हो रहे निर्माण कार्य डॉल्फिन के आवास और विचरण क्षेत्र को प्रभावित कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी योजना और अन्य पक्के निर्माण के कारण नदी के जलमार्ग बाधित हो रहे हैं, जिससे डॉल्फिन पलायन कर रही हैं।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने वन्यजीव अभयारण्य अधिनियम के उल्लंघन के मामले में बिहार सरकार की एजेंसियों को नोटिस जारी किया। शुरुआत में निर्माण कार्य को रोक दिया गया था, और अब इस मामले पर सुनवाई जारी है।
डॉल्फिन दिवस के मौके पर डीएफओ आशुतोष राज ने बताया कि वन विभाग कई कार्यक्रम आयोजित करता है। इसमें डॉल्फिन सेवाओं और “गरूड़ मित्र” का सम्मान, स्थानीय मछुआरों को जागरूक करना और डॉल्फिन संरक्षण के लिए प्रशिक्षण शामिल हैं। शहर में मानिक सरकार घाट, बरारी पुल घाट, विक्रमशिला पुल, श्मसान घाट और इंजीनियरिंग कॉलेज के पास डॉल्फिन देखी जा सकती हैं।
भारत में लगभग आधी गंगा डॉल्फिन बिहार में पाई जाती हैं, जिनमें अधिकांश गंगा नदी में रहती हैं। केंद्र सरकार ने बिहार के सुझाव पर 5 अक्टूबर को डॉल्फिन दिवस मनाने का फैसला किया। यह दिन डॉल्फिन जैसी प्रजातियों के संरक्षण और जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है। पर्यावरण और वन विभाग मछुआरों को जागरूक करने और डॉल्फिन के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने में सक्रिय हैं।
भागलपुर का विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य न केवल जीवों के लिए सुरक्षित आश्रय है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय लोगों में जागरूकता फैलाने का भी प्रमुख केंद्र बन गया है।
