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इसी क्रम में विभाग की टीम ने स्पर संख्या सात से लेकर मछली आढ़त तक विभिन्न बिंदुओं पर जलगहराई की वैज्ञानिक मापी करवाई, जिससे यह पता लगाया जा सके कि किन स्थानों पर अधिक गहराई है और कहां कटाव की संभावना अधिक हो सकती है। इसके अलावा तटबंध के किनारे-किनारे वीडियोग्राफी करवाई गई, ताकि उन स्थानों की पहचान की जा सके जो कमजोर हैं या जहां त्वरित मरम्मत की जरूरत है।

ई. अमितेश कुमार ने कहा कि वीडियोग्राफी के जरिए मिलने वाले विजुअल डेटा के माध्यम से हम संवेदनशील और कमजोर स्थानों को चिन्हित कर पाएंगे। इसके बाद प्राथमिकता के आधार पर उन स्थानों पर आवश्यक निर्माण कार्य और सुरक्षा उपाय लागू किए जाएंगे।

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उन्होंने यह भी बताया कि तटबंध पर पूर्व में जहां-जहां दरारें आई थीं या जहां पानी का रिसाव हुआ था, उन सभी स्थानों की भी विशेष निगरानी की जा रही है। बाढ़ से पहले सभी जरूरी मरम्मत कार्यों को पूरा करने की योजना है, ताकि आपदा की स्थिति में किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न न हो।

बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल की इस तैयारी को लेकर स्थानीय ग्रामीणों में भी संतोष देखा गया। ग्रामीणों का कहना है कि हर साल बाढ़ के समय तटबंध पर दबाव बढ़ता है और कटाव की संभावना बनी रहती है। ऐसे में विभाग द्वारा समय रहते सर्वे और मरम्मत कार्य प्रारंभ करना सराहनीय कदम है।

उल्लेखनीय है कि गंगा के जलस्तर में जून के अंत से लेकर अगस्त के मध्य तक बढ़ोतरी देखी जाती है, जो इस इलाके के लिए सबसे संवेदनशील समय होता है। विभाग द्वारा की जा रही यह तैयारी बाढ़ नियंत्रण की दिशा में एक अहम पहल मानी जा रही है।

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