सीमांचल खतरे में है क्योंकि अवैध घुसपैठियों ने इस इलाके की डेमोग्राफी पूरी तरह बदल दी है। 1951 से 2011 तक देश की कुल आबादी में मुस्लिम हिस्सेदारी जहां 4% बढ़ी वहीं सीमांचल में यह आंकड़ा करीब 16% है। किशनगंज जिले में तो हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।
भागलपुर। भागलपुर सीमांचल में बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटे बिहार के किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया को समेकित रूप से इसी नाम से पुकारा जाता है। सीमांचल खतरे में है, क्योंकि अवैध घुसपैठियों के कारण इस इलाके की डेमोग्राफी पूरी तरह बदल गई है। 1951 से 2011 तक देश की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी जहां चार प्रतिशत बढ़ी है, वहीं सीमांचल में यह आंकड़ा करीब 16 प्रतिशत है। किशनगंज बिहार का ऐसा जिला है, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।
बांग्लादेशी मुसलमानों ने पिछले कुछ दशकों में यहां जबरदस्त घुसपैठ की है। 2011 की जनगणना के अनुसार, किशनगंज में मुस्लिमों की जनसंख्या 67.58 प्रतिशत थी, तो हिंदू मात्र 31.43 प्रतिशत रह गए। कटिहार में 44.47, अररिया में 42.95 और पूर्णिया में मुस्लिम जनसंख्या 38.46 प्रतिशत हो चुकी है। पिछले एक दशक में मुस्लिम जनसंख्या और तेज गति से बढ़ी है। जिलों के दर्जनों गांवों में हिंदू अल्पसंख्यक होकर पलायन कर गए हैं। अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड के रामपुर गांव से दर्जनों लोग पलायन कर दोगच्छी गांव चले गए, जहां हिंदुओं की जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है। कई जगहों पर इनकी जमीन मुस्लिमों ने खरीद ली है।
घुसपैठ के बाद तेजी से बढ़ाते हैं आबादी
घुसपैठ का मुद्दा केंद्र सरकार के लिए कितना अहम है यह इससे समझा जा सकता है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में लोकसभा चुनाव का शंखनाद राजधानी पटना में न करके सीमांचल में किया। पिछले हफ्ते पूर्वोत्तर राज्यों की केंद्र सरकार के साथ हुई बैठक में भी यह मुद्दा प्रमुखता से उठा। बांग्लादेश और नेपाल के बीच मेची नदी की खुली सीमा बांग्लादेशी घुसपैठियों के आवागमन का आसान मार्ग है। घुसपैठ के बाद कहीं ठिकाना मिल जाए तो ये अपनी आबादी तेजी से बढ़ाते हैं।
किशनगंज जिले दिघलबैंक की सिंधीमारी पंचायत के पलसा गांव की ताजकेरा खातून 14 बच्चों की मां है। फतीउर खातून नौ, नेजाता बीबी आठ व मुस्तरा खातून 10 बच्चों की मां हैं। अररिया के रानीगंज प्रखंड की नरगिस खातून, शाहीना खातून, साजिदा खातून, रूबी खातून व इश्मत पांच-पांच बच्चों की मां हैं। ऐसे कई उदाहरण सीमांचल में हैं। पूर्णिया के सिविल सर्जन डा. अभय चौधरी कहते हैं, जागरूकता की कमी के कारण इस इलाके में जनसंख्या नियंत्रण का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है।
घुसपैठियों से देश की सुरक्षा को खतरा
1971 में भारत-पाक युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश के गठन के बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिम असम पहुंचे। कालांतर में ये सीमांचल के कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, अररिया आदि जिलों में बसने लगे। बता दे कि देश में मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत 14.23 है, बिहार में यह 17 प्रतिशत है, जबकि सीमांचल में बिहार से दोगुना से अधिक मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत है। यह आंकड़े ही घुसपैठ की पुष्टि करते हैं। आंकड़ों के अनुसार बिहार में दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर 25.4 है।
2001 से 2011 के बीच दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर पर नजर डालें तो पूर्णिया में 28.66, कटिहार में 30, अररिया में 30 और किशनगंज में यह 30.44 प्रतिशत है। घुसपैठ को नकारने वाले दलील देते हैं कि मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण सीमांचल में जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है, लेकिन इस दलील को मुंगेर जिला की रिपोर्ट नकारती है। बिहार में ही बांग्लादेश सीमा से दूर इस जिले की दो अल्पसंख्यक पंचायत (मिर्जापुर बरदह व श्रीमतपुर) में जनसंख्या कीदशकीय बढ़ोतरी 25.78 और 21.23 प्रतिशत है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रामनरेश सिंह कहते हैं, एक सोचे-समझे षड्यंत्र और वोट बैंक के कारण इस इलाके में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ाई जा रही है। जिस तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधियां इन इलाकों में चल रही हैं, वे देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। ऐसे में हिंदू सीमांचल से पलायन कर रहे हैं।