सुखाड़ का नुकसान झेल चुके किसानों को अब धान में बीमारी का भी खतरा है। बारिश के बाद धान की फसल में कई तरह के रोगों का खतरा हो गया है। इसमें हिस्पा कीट, राइजोक्टोनिया सोलानी जैसे कीट का भी खतरा सामने आ रहा है। अगर धान की फसल में बीमारी की बात करें तो बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट, शीथ ब्लाइट, तना छेदक आदि प्रमुख हैं। इससे धान की उपज प्रभावित हो सकती है। पौधा संरक्षण विभाग ने इन बीमारियों की रोकथाम के लिए एडवाइजरी जारी की है।
धान की फसल में लगने वाले रोगों की पहचान और रोकथाम के बारे में पौधा संरक्षण विभाग के सहायक निदेशक अरविंद कुमार ने एडवाइजरी जारी की है। कहा गया है कि जिले में अभी धान के पौधे की रोपनी किये हुए एक माह से अधिक हो चुके हैं। पिछले कुछ दिनों में बारिश भी हुई। अभी भी छिटपुट बारिश हो रही है। वर्षा के बाद वातावरण में बढ़े हुए तापमान और आर्द्रता की स्थिति में धान में फंफूदजनित व जीवाणुजनित रोगों के संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। सहायक निदेशक ने एडवाइजरी में बताया है कि अभी धान की फसल में कई तरह की बीमारियों का खतरा है। सहायक निदेशक ने बताया कि अगर धान के खेत में कीट का प्रकोप होता है तो अजीब दुर्गन्ध आएगा। ऐसी स्थिति में नारियल की रस्सी 50 मीटर लेकर मिट्टी तेल में डुबोकर एक सिरा एक आदमी और दूसरा सिरा दूसरे आदमी के हाथ में आप धान के पौधा को ऊपर से सटाते हुए झाड़ते हुए चलना चाहिए। इससे कीट का प्रकोप खेतों में कम हो सकता है।
बभनी कीट या हिस्पा
इसमें व्यस्क कीट गहरे काले रंग के होते हैं जो देखने में काली मिर्च के जैसे लगते हैं। वयस्क कीट पत्ती की हरीतिमा को खा जाती है। जिससे पत्तियों पर समनांतर सफेद लाइन दिखाई देता है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि खेतों में ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें। खेत खर पतवार से मुक्त हो। इसकी रोकथाम के लिए कार्टाप हाईड्रोक्लोराइड 4 जी दानेदार का 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खेतों में प्रयोग करें।
पत्र अंगमारी रोक (बीएलबी)
इस रोग में पत्तियां शीर्ष से दोनों किनारे या एक किनारे से सूख जाती हैं। देखते देखते पूरी पत्तियां सूख जाती हैं। इससे फसल को नुकसान होता है। इस रोग के लगने के बाद खेत से यथासंभव पानी निकाल देना चाहिए। उर्वरक का संतुलित इस्तेमाल होना चाहिए। साथ ही नेत्रजनीय उर्वरक का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट और टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
शीथ रॉट
धान फसल के पत्रावरण पर अनियमित आकार के भूरे काले धब्बे बन जाते हैं। इसके कारण बाली पत्रावरण के अंदर ही सड़ जाती है। इस बीमारी में खेतों से जल निकासी का उत्तम प्रबंध होना चाहिए। यूरिया का टॉप ड्रेसिंग सुधार होने के बाद बंद कर देना चाहिए। इसके अलावा कुछ अन्य रासायनिक घोलों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
शीथ ब्लाइट
यह फंफूद जनित रोग पौधे के तने पर अटैक करता है। इसमें सफेद कपड़े पर दूध के धब्बे जैसे दाग बन जाते हैं जो पौधे के पत्ते को सुखाकर बाली में खनिज लवण के प्रवाह को रोक देते हैं। इससे पौधे मर जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत, ईसी या प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी का 2 मिली पानी में मिलाकर यंत्र के अनुसार छिड़काव करना चाहिए।