भागलपुर जिले के कोतवाली थाना क्षेत्र से एक शर्मनाक और चिंताजनक मामला सामने आया है, जहां एक नाबालिग किशोरी को साइबर शोषण और जबरन धर्म परिवर्तन की साजिश का शिकार बनाया गया। इस मामले में सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि पीड़िता के परिजनों द्वारा आरोपी को रंगे हाथों पकड़कर पुलिस को सौंपे जाने के बावजूद, प्रशासन की बेरुखी और लापरवाही ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
घटना बाजार इलाके की है, जहां पीड़िता के साथ लंबे समय से साइबर शोषण किया जा रहा था। आरोप है कि आरोपी युवक ने किशोरी के आपत्तिजनक फोटो और वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल करना शुरू किया। डर और समाज की बदनामी के भय से किशोरी यह सब सहती रही, लेकिन जब परिजनों को इसकी भनक लगी तो उन्होंने बिना देर किए आरोपी को पकड़ा और सीधे कोतवाली थाना ले गए।
परिजनों को उम्मीद थी कि आरोपी के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जाएगी, लेकिन उनका सामना हुआ पुलिस की टालमटोल और संवेदनहीन रवैये से। कोतवाली थाना पुलिस ने न सिर्फ मामला दर्ज करने से इंकार किया, बल्कि परिजनों को इशाकचक थाना भेज दिया। वहां पहुंचने पर उन्हें फिर से कोतवाली लौटने को कहा गया। इस दौरान परिजन चार घंटे तक एक थाने से दूसरे थाने भटकते रहे, लेकिन कहीं से भी उन्हें न्याय की कोई आस नजर नहीं आई।
परिजनों का दावा है कि यह मामला सिर्फ साइबर शोषण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश भी की गई। आरोपी किशोरी पर दबाव बना रहा था कि वह अपना धर्म बदले, अन्यथा उसके फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा। यह आरोप मामले को और भी गंभीर बना देता है, लेकिन पुलिस ने इसे नजरअंदाज कर दिया।
पुलिस की इस लापरवाही पर स्थानीय लोगों में भी आक्रोश है। उनका कहना है कि अगर आरोपी को परिजनों ने पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया था, तो फिर कार्रवाई में देरी क्यों हुई? क्यों एक पीड़िता के परिजनों को न्याय के लिए थानों के चक्कर काटने पड़े?
इस पूरे मामले ने पुलिस व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर सरकार महिला सुरक्षा को प्राथमिकता देने की बात करती है, वहीं जमीनी स्तर पर ऐसे मामलों में पुलिस की निष्क्रियता पूरे सिस्टम की पोल खोल देती है।
अब देखना यह है कि इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होती है। क्या आरोपी को सजा मिलेगी? क्या पीड़िता को न्याय मिलेगा? और सबसे अहम सवाल – क्या पुलिस अपनी लापरवाही की जिम्मेदारी लेगी?
