नीतीश सरकार का पूरा फोकस इन दिनों शराबबंदी के अभियान को सफल बनाने पर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार समाज सुधार अभियान के तहत कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं और इस बीच मुख्यमंत्री ने एक और बड़ा ऐलान कर दिया है। बिहार में शराब पीने के मामले में जेल जाने के बाद कितने लोगों ने शराब से तौबा कर ली और उनके क्या हालात हैं इसको लेकर नीतीश सरकार अब नया सर्वे कराने जा रही है। बिहार में शराब छोड़ने वालों का सर्वे कराने की तैयारी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद इसकी घोषणा की है।
ऐसा पहली बार नहीं है कि बिहार में शराब छोड़ने वालों का सर्वे कराया जाए। इसके पहले साल 2018 में भी राज्य सरकार ने इसी तरह का सर्वे कराया था। इसमें यह जानकारी सामने आई थी कि राज्य के अंदर 1.64 करोड़ों लोगों ने शराब पीनी छोड़ दी है। अब 4 साल बाद एक बार फिर नीतीश सरकार सर्वे कराने को तैयार है।
सरकार इस सर्वे के जरिए यह जानने की कोशिश करेगी कि बिहार में शराबबंदी के बाद शराब छोड़ने वाले लोगों की संख्या कितनी बढ़ी है। नीतीश कुमार ने एक बार फिर कहा है कि शराबबंदी को लेकर सरकार कोई समझौता करने के मूड में नहीं है। जो लोग गड़बड़ करते हैं उन पर एक्शन लिया जाएगा और अगर कोई शराब पीकर मरता है तो उसके साथ कोई संवेदना नहीं दिखाई जा सकती।
उधर, शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कमिटमेंट पर आरजेडी ने तंज कसा है। आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने कहा है कि पिछले 16-17 साल के शासन काल में मौजूदा सरकार के ऊपर किसी अन्य मुद्दे पर इस तरह का जुनून दिखाई नहीं देता जैसा शराबबंदी को लेकर दिख रहा है। शिवानंद तिवारी ने समाज सुधार अभियान पर हो रहे खर्च को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं।
शिवानंद तिवारी ने कहा है कि 10 सालों तक बिहार में शराब की छूट रही। नीतीश कुमार शराब की दुकान खुलवा कर 2015 से गांधीजी के नाम पर लोगों को शराब पीने से मना किया जा रहा है। राजद नेता ने कहा है कि सरकार को चुनौतियों से जूझने का जज्बा नहीं है। बिहार की समस्या गरीबी है। राज्य के अंदर 52 फ़ीसदी लोग गरीब हैं लेकिन विकास का दावा करने वाले नीतीश कुमार का पूरा ध्यान शराबबंदी पर है।