बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद आंकड़ों को लेकर शुरू हुई सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ जहां सत्ताधारी दल इसे सरकार की बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं तो वहीं विपक्षी दल आंकड़ों पर सवाल उठा रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं सरकार ने राजनीतिक फायदा उठाने के लिए कुछ खास जातियों की संख्या बढ़ा दी है जबकि अधिकतर जातियों को कम करके बताया गया है। लोजपा रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने जातीय गणना के आंकड़ों पर सवाल उठाया है।
चिराग ने कहा है कि जिस तरीके से जातीय गणना के आंकड़े सार्वजनिक किए गए वह सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश पर हावी हो रहे हैं। जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उन राज्यों में तथाकथित विपक्षी गठबंधन के नेता वहां की जनता को लॉलीपॉप दिखा रहे हैं कि वे अपने राज्य में जातीय गणना कराएंगे। जिस राज्य में जातीय गणना हुआ उस राज्य के लोगों को क्या लाभ मिला पहले ये तो जान लें। आखिर ऐसा कौन सा लाभ मिलने जा रहा है कि विपक्षी नेता जातीय गणना को लेकर इतने उत्साहित नजर आ रहे हैं। जहां जहां चुनाव हो रहा है वहां जातीय गणना की घोषणा विपक्ष के नेता कर रहे हैं।
लोजपा रामविलास जाति और धर्म की बात में विश्वास नहीं रखती है लेकिन इसके बावजूद जातीय गणना का समर्थन किया था। इसका मुख्य उद्देश्य था ऐसे लोगों का पता लगाना जो आजादी के इतने साल बाद भी हासिए पर हैं। जातीय गणना के जरीए जिन्हें न राजनीतिक, ना सामाजिक और ना ही आर्थिक किसी भी धारा से जो लोग नहीं जुड़ सके हैं उनकी पहचान करने की जरुरत थी। बिहार के लोगों को इस बात की उम्मीद थी कि जातीय गणना के बाद कई आंकड़े सामने आएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सरकार ने 31 में हुई जनगणना को एव्रेजिंग कर उसे सामने रख दिया। अगर ये बंद कमरे में बनाए गए आंकड़े हों तो इसपर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पांच सौ करोड़ रुपए खर्च किए गए, कितने लोगों के दरवाजे खटखटाए गए। चिराग ने कहा दूसरों को तो छोड़ दीजिए खुद उनके परिवार के लोगों से किसी तरह की कोई जानकारी नहीं ली गई। यह जनगणा हुई कैसे भगवान जाने। समीकरण की जातियों को सरकार ने बढ़ा चढ़ाकर दिखा दिया जिस जातीय समीकरण के लाभ से पिछले 33 वर्षों से लालू नीतीश की सरकार बिहार में चल रही है। जिन चुनिंदा जातियों से लाभ मिलने वाला है सिर्फ उसके आंकड़े को बढ़ाया गया है।