भागलपुर भाजपा में वैकेंसी। चौंकिए मत..! बात पार्टी दफ्तर में किसी नौकरी की या पार्टी में किसी के समायोजन की नहीं बल्कि संसदीय चुनाव के संदर्भ में हो रही है। अभी तक के बनी परिस्थिति के मुताबिक तय है कि भाजपा को 2024 में खुद चुनाव लड़ना ही है। तो पार्टी के अंदर और राजनीतिक गलियारे में सवाल उठ रहा है कि प्रत्याशी कौन? स्थानीय होगा या बाहर से आएगा? पार्टी का समर्पित कोई नेता-कार्यकर्ता होगा या दूसरी पार्टी से आयात किया जाएगा? एनडीए के तहत 2019 के चुनाव में भाजपा को अपनी परंपरागत भागलपुर सीट को जदयू को सौंपना पड़ा था।

लिहाजा, बिहार में एनडीए की टूट के साथ ही इस सीट के लिए भाजपा में वैकेंसी निकल आई। हालांकि तब यह वैकेंसी ओपेन टू आल नहीं लग रही थी। भागलपुर के पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन, दो दशक तक भगालपुर के विधायक रहे बक्सर सांसद व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे जैसे बड़े नाम के इर्द-गिर्द दावेदारी थी। पर हर बार की तरह इस दीपावली और छठ पूजा में अश्विनी कुमार चौबे और शाहनवाज हुसैन का भागलपुर नहीं आने से फिलहाल वैकेंसी ओपेन टू आल हो गई है। हर कोई अपने-अपने हिसाब से इसकी चर्चा कर रहा है और गुणा-गणित बिठा रहा है। इसके पूर्व यह सीट कुछ खास नामों के लिए ही रिजर्व टाइप था।

रिजर्व बताए गए ये चेहरे

पूर्व सांसद और राष्ट्रीय कद का नेता होने के कारण शाहनवाज हुसैन के नाम सीट पूरी तरह से रिजर्व बताया गया। फिर बक्सर सांसद अश्विनी कुमार चौबे और झारखंड के गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे की चर्चा शुरू हुई। दोनों का कुनबा यहां बड़ा है। प्रत्यक्ष तौर पर उक्त तीनों बड़े नेताओं चौबे, दुबे, हुसैन का अपना मजबूत प्रभाव कार्यकर्ताओं और वोटरों में है। चौबे तो भागलपुर विधानसभा सीट से दो दशकों तक विधायक भी रहे हैं। चर्चा कुछ ऐसे- भाजपा में टिकट के लिए दावेदारी की तय उम्रसीमा को वे पार कर गए हैं.. 2020 में भागलपुर विधानसभा सीट से उनके पुत्र अर्जित चौबे का टिकट पार्टी परिवारवाद का हवाला देकर काट दिया.. इसलिए भाजपा में बनी वैकेंसी में शामिल होने वाले वे मजबूत पात्र हैं.. हो सकता है कि बेटे को संसदीय चुनाव के लिए मौका मिल जाए..! लेकिन वर्तमान राजनीतिक गतिविधियों पर नजर डालें तो स्पष्ट है कि चौबे अपने कर्मक्षेत्र बक्सर पर पूरा ध्यान और जोर लगाए हुए हैं।

वे अभी 7 से 15 नवंबर तक सांस्कृतिक समागम करा रहे हैं जिसमें उनकी शक्ति की झलक दिख रही है। इसमें कई धर्माचार्य, संघ प्रमुख और भाजपा के दजर्नों दिग्गज नेता आएंगे। कुछ दिन पहले भी एक बड़ा आयोजन किया था उन्होंने। इससे राजनीतिक प्रेक्षक मान रहे हैं कि उनका फोकस भागलपुर नहीं बल्कि बक्सर पर ही है। दूसरी ओर, शाहनवाज के दीपावली-छठ पर नहीं आने के पीछे भी लोग राजनीतिक मायने निकाल रहे हैं। पार्टी नेतृत्व ने उन्हें दिल्ली से बिहार भेजा और यहां पर विधान पार्षद बनाया। सवाल यह कि कहीं उन्हें बता तो नहीं दिया गया है कि पार्टी को उनकी जरूरत बिहार में ही है? रही बात निशिकांत दुबे कि तो वे दीपावली के पहले भागलपुर आए थे पर उन्होंने भागलपुर से चुनाव लड़ने का कोई संकेत तक नहीं दिया।

ऐसे में अब अन्य दावेदार मान रहे हैं कि वैकेंसी ओपेन टू आल हो गई है। स्थानीय स्तर कहलगांव से भाजपा विधायक पवन यादव, विधान पार्षद डॉ. एनके यादव, पार्टी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य पवन मिश्रा आदि पार्टी के अन्य एक-दो हैसियतदार लोग के नाम की चर्चा उक्त तीनों बड़े नामों हुसैन, चौबे, दुबे के छंट जाने पर स्थानीय दावेदार के रूप में चल भी रही है। लेकिन जदयू के महागठबंधन में चले जाने के बाद भाजपा के थिंक टैंक समझ रहे हैं कि 2024 का रण आसान नहीं है। पार्टी के बड़े नेताओं ने बताया कि हर सीट के लिए जीत की अलग-अलग रणनीति बनाई जा रही है। यह सीट गंगोता बहुल माना जा रहा है। हो सकता है कि इन नामों से अतिरिक्त और भी कोई बड़ा नाम यहां आ जाए। तय है कि पार्टी ठोक-बजाकर जीतने वाले को ही टिकट देगी।

बीजेपी की परंपरागत सीट है भागलपुर 

भागलपुर सीट भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती थी। दो दशक पहले चौबे के मनोनुकूल उम्मीदवार ही को पार्टी यहां टिकट देती थी। भाजपा से यहां पहले सांसद बने प्रभाष चंद्र तिवारी। ये चौबे के करीबी रिश्तेदार थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में निशिकांत दुबे ने यहां से भाजपा का टिकट पाने को जोर लगाया। दुबे की चौबे से नहीं बनती थी। चौबे सीधे लड़ाई में कूद गए और तब दुबे-चौबे की लड़ाई में सुशील कुमार मोदी मैदान मार गए। तब मोदी और चौबे की दोस्ती जगजाहिर थी और कहा गया कि दुबे की काट के लिए चौबे ने ही मोदी जितने बड़े नाम को सामने खड़ा कर दिया। मोदी यहां से सांसद बने। एक वर्ष बाद सुशील मोदी बिहार के उपमुख्यमंत्री बने और यह सीट खाली हुआ और फिर उपचुनाव में शाहनवाज आए। शाहनवाज उपचुनाव जीते। इसके बाद दो खेमों दिखने वाली भाजपा तीन खेमों में बंट गई।

हालांकि इसके आगे के चुनाव में खेमेबंदी के बाद भी शाहनवाज जीते पर 2014 में वे करीब 12 हजार वोट से हार गए। इस सीट पर राजद उम्मीदवार के रूप में बूलो मंडल जीते। 2019 में शाहनवाज पूरी तैयारी से लगे थे लेकिन तब यह सीट एनडीए के तहत जदयू के हिस्से में आ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में चल रही जनता आंधी में तब गठबंधन प्रत्याशी के रूप में जदयू उम्मीदवार अजय मंडल ने तीन लाख से अधिक वोटों से जीते। इसके बाद तो भाजपा में इस सीट पर संसदीय वैकेंसी ही बंद हो गई कि अचानक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजद के साथ आ जाने से भाजपा में भागलपुर संसदीय सीट के लिए वैकेंसी बनी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *