बाढ़-कटाव से त्रस्त रहने वाला बिहार का कोसी इलाका जीविका के सहयोग से श्वेत क्रांति की नई पटकथा लिख रहा है। पिछले साढ़े चार साल में यहां की महिलाओं ने 38 करोड़ रुपये के अनुदान पर शुरू की गई कंपनी के टर्नओवर को 100 करोड़ रुपये पार पहुंचा दिया है।
अब कोसी क्षेत्र की हजारों महिलाएं पशुपालन और दुग्ध व्यवसाय से आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। दूध खरीदने वाली कंपनी कोशिकी महिला मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के पास छह करोड़ से अधिक की पूंजी है। इनमें चार करोड़ रुपये शेयरधारकों के हैं। इनमें कंपनी से जुड़कर व्यवसाय कर रही महिलाएं भी हैं।
सहरसा के पामा गांव की अमृता देवी के दोनों बच्चे सीबीएसई बोर्ड के स्कूल में पढ़ रहे हैं। इसी गांव की पूजा के घर में दूध बेचकर पैसे आ रहे हैं। पहले पूजा के पशुओं को सही से चारा तक नहीं मिल पाता था। अब हर महीने की 3, 13 और 23 तारीख को खाते में पैसे आ जाते हैं। कंपनी 43-44 रुपये प्रति लीटर की दर से महिलाओं से दूध खरीद रही है।
पूजा ने एक गाय और खरीदी है। उनकी योजना 10 गायों को पालने की है। कंपनी बढ़िया किस्म के हरे चारे के बीज और मिनरल मिक्सर भी बाजार से कम दर पर उपलब्ध कराती है, इसलिए गायों को पालने में लगने वाली लागत में भी कमी आई है।
सुपौल जिले के बसावन पट्टी की अंजनी देवी एक निजी स्कूल में पढ़ाती हैं। उन्हें इतना पैसा नहीं मिलता था कि सही तरीके से परिवार का पेट ही भर पाएं, इसलिए 25 हजार का ऋण लेकर उन्होंने दो गायें खरीदी है। पहले 27-28 रुपये प्रति लीटर दूध बेचती थीं। अब दूध की कीमत अच्छी मिल रही है।
इसी तरह मधेपुरा जिले के लक्ष्मीनिया गांव की रंजू देवी ने भी एक गाय खरीदी है। उनके पास एक गाय और भैंस पहले से थी। भैंस के दूध की कीमत 75 से 83 रुपये प्रति लीटर मिल रही है। इस कमाई से वे बेटे को कोटा और बेटी को सहरसा में रखकर पढ़ा रही हैं। इन सभी को पशु खरीदने के लिए जीविका ने ऋण भी उपलब्ध कराया है।
अक्टूबर, 2018 में कंपनी ने सहरसा, सुपौल, मधेपुरा और खगड़िया के 800 गांवों में दूध खरीदने की पहल शुरू की थी। बिहार राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (जीविका) ने इसे 38 करोड़ का अनुदान देकर वित्त पोषित किया था।
जीविका कार्यकर्ताओं को कंपनी द्वारा अबतक कुल 161 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। कंपनी के शेयर धारकों की संख्या निर्धारित लक्ष्य 42 हजार तक पहुंच गई है। कंपनी द्वारा जीविका कार्यकर्ताओं और अन्य महिला पशुपालकों को शेयरधारक बनाया जाता है। इसके लिए लाभुक को 150 रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
कंपनी से सहरसा जिले के 22,239, सुपौल जिले के 7,628, मधेपुरा जिले के 6,477 व खगड़िया जिले के 6,077 शेयर धारक जुड़े हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में कंपनी द्वारा शेयर धारकों को 38 लाख रुपये लाभांश के तौर पर दिए गए हैं।
अभी औसतन 63,916 लीटर दूध प्रतिदिन दूध संग्रहण केंद्र पर पहुंचाया जाता है। इसे दो लाख लीटर का तक करने का लक्ष्य है। 826 केंद्रों पर दूध का संग्रह किया जा रहा है। इनमें सहरसा जिले के 192, सुपौल जिले के 187, मधेपुरा जिले के 226 एवं खगड़िया जिले के 221 केंद्र हैं।
सुपौल में तीन व सहरसा-मधेपुरा-खगड़िया जिलों में चार-चार दूध शीतलीकरण केंद्र है। इस दूध को कंपनी सुपौल, पूर्णिया व हाजीपुर की दूसरी डेयरी को बेच देती है। कुछ दूध का दही जमाकर भी बाजार में बेचा जाता है।
कोशिकी महिला मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संदीप यादव कहते हैं कि कोसी क्षेत्र में दूध उत्पादन की अपार संभावनाएं है। अगर दो-तीन साल इसी तरह काम होता रहा तो प्रतिदिन दो लाख लीटर से अधिक दूध संग्रह हो सकता है। इससे इलाके की आर्थिक गतिविधियों को नई गति मिलेगी।
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