सहरसा नगर निगम एक बार फिर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को लेकर सुर्खियों में है। शहर में 120 वॉट की एलईडी स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए प्रस्तावित ₹11.17 करोड़ की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर अनियमितताओं और संभावित घोटाले के आरोप सामने आए हैं। हैरानी की बात यह है कि मामले की जांच के लिए टीम का गठन तो किया गया, लेकिन अब तक किसी भी स्तर पर ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है, जिससे नगर निगम की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
बताया जा रहा है कि यह परियोजना 15वें वित्त आयोग की राशि से संचालित की जानी है। लेकिन विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि विकास के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग किया जा रहा है। जनता जनता दल (JJD) के कोसी प्रमंडल प्रभारी देवनारायण यादव ने कहा कि 15वें वित्त आयोग की राशि जनता के विकास के लिए है, न कि बंदरबांट के लिए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि नगर निगम प्रशासन को जनता के सवालों का जवाब देना होगा और दोषियों पर कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।
इस पूरे मामले में एक बड़ा सवाल निविदा प्रक्रिया को लेकर भी उठ रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता रौशन झा ने बताया कि टेंडर दस्तावेजों के अनुसार वार्ड 01 से 09, 10 से 18 और यहां तक कि वार्ड 37 से 45 तक के लिए एक समान प्राक्कलित राशि ₹1,86,27,528.00 दर्शाई गई है। जबकि सच्चाई यह है कि हर वार्ड की भौगोलिक स्थिति, सड़कों की लंबाई, गलियों की चौड़ाई और आबादी की जरूरतें अलग-अलग हैं। ऐसे में बिना किसी भौतिक सर्वे के सभी वार्डों के लिए एक जैसा बजट तैयार किया जाना गंभीर सवाल खड़े करता है और ‘कॉपी-पेस्ट’ एस्टिमेट की आशंका को मजबूत करता है।
टेंडर में 120 वॉट की हाई-पावर एलईडी लाइट लगाने का उल्लेख है, लेकिन यह साफ नहीं किया गया है कि ये लाइटें केवल मुख्य सड़कों पर लगेंगी या फिर संकरी गलियों में भी। जानकारों का कहना है कि इतनी हाई-पावर लाइटें गलियों के लिए न तो जरूरी हैं और न ही व्यावहारिक। इससे लागत बढ़ने और अनावश्यक खर्च की आशंका जताई जा रही है।
इसके अलावा, परियोजना की कार्य अवधि महज तीन महीने तय की गई है, लेकिन लाइट खराब होने की स्थिति में मेंटेनेंस को लेकर कोई स्पष्ट गारंटी या व्यवस्था नहीं दिखाई देती। जबकि इससे पहले स्ट्रीट लाइट के रखरखाव को लेकर करीब ₹14 करोड़ की एएमसी का मामला अब भी लंबित है।
पूर्व में उरण दास्ता के नाम पर जांच टीम सहरसा पहुंची थी, लेकिन कई बार संबंधित फाइलें उपलब्ध नहीं कराई जा सकीं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर संभावित घोटाले को किसका संरक्षण प्राप्त है। जनता अब केवल जांच नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई और जवाबदेही की मांग कर रही है।
