मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कहा कि पूर्व सासंद आनंद मोहन को जेल से रिहाई नियम के अनुसार सारी शर्तों को पूरा करने के बाद ही दी गई है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जो लंबे समय से चली आ रही है।

आजीवन कारावास पाए बंदियों को कारामुक्त करने के लिए नियम और प्रक्रिया बनी हुई है। इसका पूरा पालन करने के बाद ही आनंद मोहन को रिहा किया गया है। इस फैसले को राजनीतिक रंग देना उचित नहीं है।

मुख्य सचिवालय में गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस उन्होंने कहा कि बिहार में नया जेल मेन्युअल वर्ष 2012 में बना था। इसके नियम 474 से 487 में विस्तार से प्रक्रिया दी हुई है। इसमें लिखा है कि जेल में कम से कम 14 वर्ष बिताने के बाद ही रिहाई पर विचार होगा। परिहार की अवधि मिलाकर यह 20 वर्ष होना चाहिए।

आनंद मोहन 15 वर्ष 9 माह 25 दिन जेल में रहे और परिहार सहित कुल अवधि 22 वर्ष 13 दिन की हो चुकी है। इसके अलावा जेल में अच्छे आचरण को भी देखा जाता है। ऐसे बंदियों पर विचार के लिए राज्य दंडादेश परिहार पर्षद गठित है।

पिछले छह वर्षोँ में पर्षद की 22 बैठकें हुईं और 1161 बंदियों को छोड़ने पर विचार हुआ। 698 रिहा भी किए गए। पर्षद के अध्यक्ष गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव होते हैं। दो न्यायिक सदस्य भी होते हैं।

वर्तमान में जिला जज पटना और विधि सचिव सदस्य हैं। रिहा करने के पहले जिला एसपी और ट्रायल कोर्ट के जज से भी मंतव्य लिया जाता है। यह सभी प्रक्रिया आनंद मोहन समेत 26 लोगों के रिहा करने को लेकर भी हुई हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव चैतन्य प्रसाद और कारा महानिरीक्षक शीर्षत कपिल अशोक भी उपस्थित थे।

मुख्य सचिव ने कहा कि नियम में एक बदलाव यह किया गया है कि लोकसेवक और आम नागरिक की हत्या के मामले में दोषियों पर एक नियम चलेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि विशेष अवसरों जैसे 15 अगस्त, 26 जनवरी और दो अक्टूबर को भी बंदियों को नियमानुकूल शर्तों पर रिहा किया जाता है। दस वर्ष अथवा उससे कम की सजा पाने वाले बंदियों पर यह लागू होता है। अब तक ऐसे मामले में 104 कैदियों को रिहा किया गया है।

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