**भागलपुर (बिहार):**
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (TMBU) में व्याप्त शैक्षणिक अराजकता, भ्रष्टाचार और छात्र हितों की अनदेखी के खिलाफ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। एबीवीपी के आह्वान पर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन को बंद करा दिया गया, जिससे पूरे परिसर में शिक्षण कार्य प्रभावित रहा। प्रदर्शनकारियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर छात्रों की समस्याओं की अनदेखी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे एबीवीपी के प्रमुख छात्र नेता कुणाल पांडे ने कहा, “विश्वविद्यालय की समस्याओं पर कुलपति का रवैया पूरी तरह से उदासीन है। उनकी निष्क्रियता यह दर्शाती है कि वे छात्र हितों की रक्षा और समस्याओं के समाधान के लिए गंभीर नहीं हैं। कुलपति की भूमिका प्रश्नों के घेरे में है, और उनके रहते विश्वविद्यालय में सुधार संभव नहीं है।”
### **प्रदर्शन के प्रमुख मुद्दे**
**1. गेस्ट फैकल्टी की बहाली में अनियमितता:**
कुणाल पांडे ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने गेस्ट फैकल्टी की बहाली के लिए केवल सात दिन का समय दिया। उन्होंने कहा, “सात दिनों का समय देकर प्रशासन ने देशभर के अन्य विश्वविद्यालयों के योग्य अभ्यर्थियों के लिए आवेदन की प्रक्रिया को सीमित कर दिया। इससे यह संदेह होता है कि बहाली प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है।”
एबीवीपी की मांग है कि गेस्ट फैकल्टी की बहाली प्रक्रिया के लिए एक महीने का समय दिया जाए, ताकि देशभर के योग्य उम्मीदवार आवेदन कर सकें और पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से संपन्न हो।
**2. एससी-एसटी एवं अन्य वर्ग के छात्रों का निशुल्क नामांकन:**
कुणाल पांडे ने यह भी कहा कि तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में बिहार के अन्य विश्वविद्यालयों की तर्ज पर एससी-एसटी और सभी वर्गों के छात्रों को निशुल्क नामांकन की सुविधा दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा, “शिक्षा का अधिकार सभी का है। यदि बिहार के अन्य विश्वविद्यालय निशुल्क नामांकन की सुविधा दे सकते हैं, तो तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय इससे क्यों पीछे है?”
### **छात्रों की मांगें और चेतावनी**
एबीवीपी ने विश्वविद्यालय प्रशासन को चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें जल्द पूरी नहीं की गईं, तो वे इससे भी बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।
**एबीवीपी की प्रमुख मांगें:**
– गेस्ट फैकल्टी की बहाली प्रक्रिया के लिए एक महीने का समय दिया जाए।
– एससी-एसटी और सभी वर्गों के छात्रों का निशुल्क नामांकन सुनिश्चित किया जाए।
– विश्वविद्यालय प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार और शैक्षणिक अराजकता पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए।
– कुलपति को हटाया जाए या उन्हें छात्रों की समस्याओं के समाधान के लिए जवाबदेह बनाया जाए।
### **छात्रों का आक्रोश और प्रशासन की चुप्पी**
प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने जोरदार नारेबाजी की और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ आक्रोश प्रकट किया। छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय में पढ़ाई-लिखाई का माहौल पूरी तरह से बिगड़ चुका है। समय पर परीक्षा और परिणाम नहीं होते हैं, जिससे छात्रों का शैक्षणिक भविष्य अंधकारमय हो गया है।
छात्रा कविता कुमारी ने कहा, “हमें समय पर पढ़ाई और परीक्षा की जरूरत है। लेकिन यहां प्रशासन की उदासीनता के कारण हमें हर सेमेस्टर के लिए संघर्ष करना पड़ता है।”
### **प्रशासन की प्रतिक्रिया**
हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, प्रशासन एबीवीपी की मांगों पर विचार कर रहा है। विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “छात्रों की मांगें जायज हैं और प्रशासन जल्द ही कोई सकारात्मक कदम उठाएगा।”
### **भविष्य की रणनीति**
एबीवीपी ने साफ कर दिया है कि यदि उनकी मांगों को जल्द पूरा नहीं किया गया तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। कुणाल पांडे ने चेतावनी दी कि “यदि विश्वविद्यालय प्रशासन ने हमारी बातों को गंभीरता से नहीं लिया, तो हम अनिश्चितकालीन तालाबंदी करने से भी पीछे नहीं हटेंगे। छात्र हितों के साथ किसी भी प्रकार का समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
### **राजनीतिक प्रतिक्रियाएं**
विश्वविद्यालय में हो रहे इस आंदोलन पर स्थानीय राजनीतिक दलों की भी नजर है। कुछ छात्र नेताओं का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रों की मांगों पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि शैक्षणिक सत्र में देरी न हो।
### **निष्कर्ष:**
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में एबीवीपी द्वारा चलाया जा रहा यह आंदोलन न केवल छात्रों की समस्याओं को उजागर करता है, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। यदि प्रशासन समय रहते इन मांगों पर ध्यान नहीं देता, तो आंदोलन और उग्र हो सकता है, जिसका प्रभाव पूरे शैक्षणिक माहौल पर पड़ेगा।
छात्र हितों की अनदेखी और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती छात्रों के विश्वास को पुनः प्राप्त करना है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन छात्रों की मांगों के समाधान के लिए क्या कदम उठाता है।
