गांव

 

गया जिला का तिलैया गांव आज पूरे बिहार में मिसाल बन गया है। करीब 200 घरों और 700 की आबादी वाले इस छोटे से गांव में शिक्षकों की संख्या ही इसकी पहचान है। यहां लगभग हर घर में एक शिक्षक है। सरकारी और निजी शिक्षक मिलाकर संख्या 200 से अधिक है। यही वजह है कि इसे “शिक्षक वाला गांव” कहा जाता है।

 

मुनवा देवी से शुरू हुई कहानी

 

इस बदलाव की कहानी 1955 से शुरू होती है। उस समय गांव में एक जमींदार का दबदबा था। गांव की मुनवा देवी ताड़ी बेचकर परिवार चलाती थीं। उनके छोटे बेटे शुकदेव चौधरी को पढ़ाई का शौक था। रोज़ 18 किलोमीटर दूर शेरघाटी तक पैदल जाते देख, मुनवा देवी ने पैसे जोड़कर उसके लिए साइकिल खरीदी। एक दिन बेटा साइकिल से जमींदार की हवेली के सामने से निकल गया और घंटी बजा दी। बस इसी ‘गुनाह’ के लिए मुनवा देवी को पंचायत ने सजा सुनाई।

 

जमींदार ने ताने में कहा – “बेटे को मास्टर साहब बनाकर बराबरी करना चाहती हो?” तब मुनवा देवी ने पूछा – “मालिक मास्टर साहब क्या होता है?” जब बताया गया कि शिक्षक को मास्टर साहब कहते हैं, तो उन्होंने ऐलान किया – “तो मेरा बेटा मास्टर साहब ही बनेगा।” यहीं से तिलैया में शिक्षा की मशाल जली।

 

शुकदेव चौधरी ने रखी नींव

 

शुकदेव चौधरी गांव के पहले मैट्रिक पास छात्रों में शामिल हुए और बाद में शिक्षक बने। उन्होंने अपने बच्चों को भी पढ़ाया और शिक्षक बनाया। आज उनके परिवार के 12 से ज्यादा सदस्य शिक्षक हैं। बेटा वीरेंद्र कुमार 1998 में शिक्षक बने, जितेंद्र कुमार 1999 में। वीरेंद्र कुमार को 2024 में राजकीय पुरस्कार मिला, जबकि इस वर्ष 2025 में जितेंद्र कुमार को शिक्षक दिवस पर सम्मानित किया जाएगा।

 

गांव में शिक्षा का माहौल

 

तिलैया गांव की साक्षरता दर 95% से अधिक है। यहां नौ घरों में पांच-पांच शिक्षक हैं। कई घरों में चार और तीन-तीन शिक्षक हैं। बेटियां और बहुएं भी पीछे नहीं हैं। रीता कुमारी, रेखा कुमारी, सुनीता, धनेश्वरी, नीलम, मारी अर्पणा जैसी महिलाएं भी शिक्षिका हैं।

 

गांव में सामूहिक प्रयास से शिक्षा का स्तर इतना बढ़ा कि यहां से प्रेरणा लेकर आसपास के गांव भी शिक्षित होने लगे। यहां एक सरस्वती संघ और पुस्तकालय भी है, जहां युवा सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं।

शिक्षक

सम्मान और गर्व

 

जितेंद्र कुमार बताते हैं कि उन्होंने अपने विद्यालय में “सिटी बजाओ अभियान” चलाया, ताकि बच्चों की उपस्थिति बढ़े। ईमानदारी और निष्ठा से काम करने के कारण उन्हें राजकीय सम्मान मिलने जा रहा है। गांव के युवाओं का कहना है कि यहां शिक्षक बनना ही सबसे बड़ा गर्व है।

आज तिलैया गांव शिक्षा का प्रतीक है। जिस गांव में कभी जमींदार के सामने जूते उतारकर गुजरना पड़ता था, वहां आज हर घर से शिक्षक निकल रहे हैं। मुनवा देवी की जिद ने गांव की तस्वीर बदल दी। उनकी जलायी हुई शिक्षा की लौ आज भी पूरे क्षेत्र को रोशन कर रही है।

 

 

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