जनसुराज अभियान के तहत प्रशांत किशोर की जनसुराज यात्रा बुधवार की देर शाम बिहपुर पहुंची, जहां एनएच-31 स्थित पवन चौधरी के पेट्रोल पंप परिसर में हजारों की संख्या में कार्यकर्ता और समर्थक मौजूद थे। यात्रा के आगमन पर लोगों ने ज़ोरदार नारे लगाए — “जनसुराज या जिवबाद, अब बदलाव होगा बिहार में”, और “बिगर जागेगा, बिहार बदलेगा।” पूरे परिसर में उत्साह और उम्मीद का माहौल देखने को मिला।

प्रशांत किशोर ने अपने संबोधन में बिहार की वर्तमान व्यवस्था पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि “बिहार की गीता है, लेकिन नेता भीख मांगते हैं और जनता भरोसा करती है; फिर भी लाभ गुजरात की फैक्ट्रियों और उद्योगों को मिलता है।” उन्होंने कहा कि बिहार के नौजवान रोजगार की तलाश में गुजरात, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जाकर मशीनें चलाते हैं, जबकि बिहार की धरती पर खेत बंजर पड़े हैं और उद्योग वीरान हैं।

उन्होंने आगे कहा कि आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी बिहार का कोई ऐसा जिला नहीं है, जहां उद्योग का पहिया रात-दिन घूमता हो। यहां के लोग मेहनती और प्रतिभाशाली हैं, लेकिन व्यवस्था ऐसी बनाई गई है कि उन्हें अपने ही राज्य में काम नहीं मिलता। बिहार की सरकारें — चाहे किसी भी दल की रही हों — ने राज्य के हिस्से का हक नहीं दिलाया। “भाजपा हो या उससे पहले की सत्ता, सबने बिहार को केवल वोट बैंक समझा, विकास का हक नहीं दिया,” प्रशांत किशोर ने कहा।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जनसुराज अभियान केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में एक प्रयास है। उनका कहना था कि बिहार के हर प्रखंड, हर पंचायत में ऐसे जनसेवक तैयार करने की जरूरत है जो जनता की वास्तविक आवाज़ बनें, न कि केवल चुनाव जीतने के बाद पांच साल गायब हो जाने वाले नेता।

प्रशांत किशोर ने बताया कि अब तक वे राज्य के सैकड़ों प्रखंडों का भ्रमण कर चुके हैं और हर जगह जनता की अपेक्षाओं और समस्याओं को करीब से समझा है। उन्होंने कहा, “बिहार की जनता अब सिर्फ वोटर नहीं, बदलाव की भागीरथ है। जनसुराज यात्रा इस सोच को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।”

कार्यक्रम के अंत में उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे जात-पात और दलगत सोच से ऊपर उठकर बिहार के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएं। उनका संदेश स्पष्ट था — अब वक्त केवल सवाल करने का नहीं, बल्कि बिहार को उसके असली हक दिलाने का है।

जनसुराज यात्रा का यह पड़ाव बिहपुर में जनचेतना का प्रतीक बन गया, जहां हजारों लोगों की भीड़ ने एक नए बिहार के सपने को साझा किया। प्रशांत किशोर की यह यात्रा अब जनआंदोलन का रूप लेती दिख रही है, जिसका लक्ष्य है — “बदलाव नहीं रुकेगा, जब तक बिहार नहीं जगेगा।”

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