सहरसा सदर अस्पताल में लगातार हो रही चोरी की घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए अस्पताल प्रशासन ने सख्त कदम उठाया है। सोमवार की शाम से अस्पताल परिसर के दो प्रमुख गेट बंद कर दिए गए हैं। प्रशासन का कहना है कि यह फैसला सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से लिया गया है, लेकिन इसका सीधा असर मरीजों और उनके परिजनों पर पड़ रहा है, जिन्हें अब आवागमन में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
गेट बंद होने से खासकर उन लोगों को ज्यादा दिक्कत हो रही है, जिन्हें रोजमर्रा का जरूरी सामान लाने या आपात स्थिति में जल्द अस्पताल पहुंचने की जरूरत होती है। पहले जिन गेटों के जरिए मरीजों के परिजन आसानी से बाजार या आसपास के इलाकों में आ-जा सकते थे, अब उन्हें काफी लंबा रास्ता तय करना पड़ रहा है।
हकपाड़ा निवासी शबाना ने बताया कि उनकी बड़ी बहन गर्भवती हैं और प्रसव पीड़ा के बाद सोमवार को ही सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उन्होंने कहा कि अस्पताल परिसर से बाजार जाने के लिए जिन गेटों का उपयोग होता था, उनके बंद हो जाने से दवा, खाना और अन्य जरूरी सामान लाने में काफी परेशानी हो रही है। कई बार छोटे-छोटे सामान के लिए भी उन्हें दूर तक चक्कर लगाना पड़ रहा है।
वहीं एक अन्य परिजन पुनिता देवी ने बताया कि उनके 25 वर्षीय बेटे को सांस फूलने की बीमारी के कारण आज ही सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उन्होंने बताया कि सुबह वे इसी गेट से अस्पताल के अंदर गई थीं, लेकिन शाम को जब वे घर से सामान लेकर लौटीं तो गेट बंद मिला। मजबूरी में उन्हें अस्पताल के दूसरे छोर से करीब 500 मीटर पैदल चलकर अंदर जाना पड़ा, जिससे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की परेशानी हुई।
इस पूरे मामले पर सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. एस.एस. मेहता ने बताया कि अस्पताल परिसर में लगातार हो रही चोरी की घटनाओं को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा को देखते हुए कुछ गेटों को बंद करना जरूरी हो गया था। हालांकि मरीजों और उनके परिजनों को हो रही असुविधा को देखते हुए वैकल्पिक व्यवस्था पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि सुरक्षा के साथ-साथ सुविधा का भी ध्यान रखा जा सके।
एक ओर जहां अस्पताल प्रशासन सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने में जुटा है, वहीं दूसरी ओर मरीजों और उनके परिजन मांग कर रहे हैं कि कोई ऐसी व्यवस्था की जाए, जिससे चोरी भी रुके और उन्हें अनावश्यक परेशानियों का सामना भी न करना पड़े।
