सहरसा ज़िले में एक बार फिर बंधुआ मजदूरों के अधिकारों को लेकर आवाज़ बुलंद हुई है। बचपन बचाओ आंदोलन के बैनर तले बंधुआ मजदूरों के प्रदेश पुनर्वास संयोजक घूरन महतो के नेतृत्व में दर्जनों बंधुआ मजदूरों ने ज़िलाधिकारी को आवेदन सौंपकर अपनी समस्याओं से अवगत कराया और न्याय की मांग की।

 

मामला सहरसा ज़िले के नौहट्टा प्रखंड अंतर्गत मुरादपुर पंचायत से जुड़ा हुआ है, जहाँ कुल 22 बंधुआ मजदूर पिछले कई वर्षों से अपने हक़ और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मजदूरों का आरोप है कि वर्ष 2018 से उनकी पेंशन बिना किसी स्पष्ट कारण के बंद कर दी गई है। पेंशन बंद होने के बाद इन परिवारों के सामने रोज़ी-रोटी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। कई मजदूर बुजुर्ग हैं, जो काम करने में असमर्थ हैं और पूरी तरह पेंशन पर निर्भर थे।

 

बंधुआ मजदूरों ने यह भी बताया कि सरकार की पुनर्वास नीति के तहत उन्हें कृषि भूमि उपलब्ध कराई जानी थी, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें और सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें। लेकिन हकीकत यह है कि आज तक उन्हें जमीन नहीं मिली। मजदूरों का कहना है कि ज़मीन के नाम पर केवल खाता और खेसरा का विवरण दिया गया है, जबकि ज़मीनी स्तर पर उन्हें कोई कृषि योग्य भूमि नहीं सौंपी गई है। इससे सरकार की पुनर्वास योजना कागज़ों तक ही सीमित नजर आ रही है।

 

इस दौरान प्रदेश पुनर्वास संयोजक घूरन महतो ने प्रशासन पर उदासीनता का आरोप लगाते हुए कहा कि बंधुआ मजदूरों को आज़ाद कराने के बाद सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उनका सही ढंग से पुनर्वास किया जाए। पेंशन बहाल करना और ज़मीन उपलब्ध कराना उनका कानूनी अधिकार है, कोई एहसान नहीं।

 

उन्होंने ज़िलाधिकारी से मांग की कि सभी बंधुआ मजदूरों की पेंशन अविलंब बहाल की जाए और पुनर्वास नीति के तहत उन्हें जल्द से जल्द कृषि योग्य भूमि उपलब्ध कराई जाए। साथ ही चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ने शीघ्र कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो बंधुआ मजदूर आंदोलन को और तेज करने के लिए मजबूर होंगे।

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