भागलपुर में गंगा कटाव से वर्षों पहले विस्थापित हुए लोगों ने पुनर्वास की मांग को लेकर रविवार को बीएमसी मकतब परिसर में एक बैठक आयोजित की। बैठक में बड़ी संख्या में गंगा कटाव पीड़ित परिवारों ने हिस्सा लिया और सरकार से पुनर्वास के लिए स्थायी जमीन उपलब्ध कराने की मांग उठाई। विस्थापितों का कहना है कि गंगा कटाव के कारण वे अपने घर, जमीन और आजीविका सब कुछ खो चुके हैं, लेकिन आज तक उन्हें सरकारी स्तर पर कोई ठोस सहायता नहीं मिल पाई है।

 

बैठक में शामिल मु. शमशाद अली, साजदा खातून, चंद्रकला देवी, नीतू देवी, मु. औरंगजेब, जमीला खातून, शहनाज खातून, मेहरूनिशा खातून, जियाउल हक, खुशबू देवी, इब्राहिम अली और शीतला खातून समेत अन्य लोगों ने अपनी पीड़ा साझा की। विस्थापितों ने बताया कि वे पिछले करीब पंद्रह वर्षों से पुनर्वास के लिए अलग-अलग सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें जमीन नहीं दी गई है।

 

विस्थापितों का कहना है कि भारत सरकार द्वारा रेलवे की जमीन पर बसे लोगों को हटाया जा रहा है और अतिक्रमण मुक्त करने की कार्रवाई की जा रही है। ऐसे में गंगा कटाव से उजड़े परिवारों पर दोहरी मार पड़ रही है। उनका कहना है कि बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए अतिक्रमण हटाना पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है। लोग डर के साए में जी रहे हैं कि कहीं वे फिर से बेघर न हो जाएं।

 

बैठक में मौजूद लोगों ने साफ तौर पर कहा कि अतिक्रमण हटाने से पहले बिहार सरकार को चाहिए कि गंगा कटाव से विस्थापित सभी परिवारों को पुनर्वास के लिए जमीन उपलब्ध कराई जाए। उन्होंने मांग की कि सरकार एक स्पष्ट पुनर्वास नीति बनाकर तत्काल प्रभाव से जमीन का आवंटन करे, ताकि विस्थापित परिवार सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।

 

विस्थापितों ने यह भी कहा कि उनके बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं, रोजगार के साधन नहीं हैं और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। बावजूद इसके उनकी आवाज अब तक शासन-प्रशासन तक नहीं पहुंच पाई है। बैठक के अंत में सभी विस्थापितों ने एक स्वर में चेतावनी दी कि यदि जल्द उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

 

गंगा कटाव पीड़ितों ने सरकार से मानवीय दृष्टिकोण अपनाने और वर्षों से न्याय की आस लगाए बैठे विस्थापित परिवारों को शीघ्र पुनर्वास सुविधा देने की मांग की।

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