खबर बिहार के सहरसा ज़िले से है, जहाँ नौहट्टा प्रखंड के मुरादपुर पंचायत के 22 बंधुआ मजदूरों की बदहाली एक बार फिर सामने आई है। इन श्रमिकों ने जिला प्रशासन को आवेदन देकर अपने बुनियादी अधिकारों की मांग की है। मामला बेहद गंभीर और चिंताजनक है, क्योंकि ये मजदूर पिछले सात वर्षों से सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन अब तक उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया है।

 

बंधुआ मजदूरों का कहना है कि वर्ष 2018 तक उन्हें सरकार की ओर से पेंशन का लाभ मिल रहा था। अचानक बिना किसी स्पष्ट कारण के उनकी पेंशन बंद कर दी गई। पेंशन बंद होने के बाद इन मजदूरों और उनके परिवारों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। वृद्धावस्था और गरीबी से जूझ रहे ये श्रमिक आज भी न्यूनतम सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

 

श्रमिकों का आरोप है कि सरकार की नीति के अनुसार बंधुआ मजदूरों को पुनर्वास के तहत कृषि योग्य भूमि दी जानी चाहिए, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। लेकिन वर्षों बीत जाने के बावजूद न तो उन्हें जमीन मिली और न ही पेंशन बहाल की गई। कई बार प्रखंड कार्यालय, अंचल कार्यालय और अन्य विभागों में आवेदन देने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

 

पीड़ित मजदूरों का कहना है,

“हम लोगों ने कई बार आवेदन दिया, अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। पेंशन बंद है और जमीन भी नहीं मिली। ऐसे में परिवार का भरण-पोषण करना बेहद मुश्किल हो गया है।”

 

सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पात्र होने के बावजूद ये बंधुआ मजदूर सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। यह स्थिति प्रशासनिक लापरवाही और योजनाओं के क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े करती है। जब योजनाएँ ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुँच पा रही हैं, तो उनके उद्देश्य पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है।

 

अब इन 22 बंधुआ मजदूरों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि उनकी पेंशन जल्द से जल्द बहाल की जाए और पुनर्वास के तहत उन्हें कृषि योग्य जमीन उपलब्ध कराई जाए, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें। देखना होगा कि प्रशासन इस गंभीर मामले पर कब तक ठोस कदम उठाता है।

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