बिहार के सहरसा जिले से एम्स (AIIMS) की स्थापना को लेकर वर्षों पुराना मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। कोसी क्षेत्र के लिए एम्स की मांग लंबे समय से उठती रही है। चुनावी मौसम में कई शीर्ष नेताओं ने सहरसा में एम्स खोलने की घोषणा की, लेकिन ये दावे मंचों और भाषणों तक ही सीमित रह गए। जमीनी स्तर पर आज तक कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है, जिससे क्षेत्र के लोगों में निराशा और आक्रोश दोनों बढ़ते जा रहे हैं।

 

हालांकि सहरसा और कोसी क्षेत्र से जुड़े नेताओं, जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को कभी ठंडा नहीं पड़ने दिया। लगातार आंदोलन, ज्ञापन और कानूनी लड़ाई के बावजूद अब तक सहरसा को एम्स की सौगात नहीं मिल सकी है। पूर्व जिला पार्षद प्रवीण आनंद और संघर्ष समिति के अध्यक्ष विनोद झा के नेतृत्व में यह आंदोलन अब जन आंदोलन का रूप ले चुका है। नुनू यादव सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस संघर्ष को मजबूती से आगे बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप मामला देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट, तक पहुंचा।

 

जानकारी के अनुसार एम्स स्थापना के लिए तय किए गए 27 जिलों के भूमि मापदंड (क्राइटेरिया) में सहरसा की जमीन को उपयुक्त पाया गया था। इसके विपरीत, दरभंगा का नाम उस सूची में शामिल नहीं था। इसके बावजूद वहां लगभग 300 करोड़ रुपये की लागत से मिट्टी कार्य और चाहरदिवारी का काम कराया जा रहा है। आंदोलनकारियों का आरोप है कि यह सरकारी धन के दुरुपयोग का मामला है और इससे न्यायिक प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े होते हैं।

 

एम्स सहरसा से जुड़ा मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी 810/2024 के रूप में लंबित है। इस पर 16 दिसंबर को सुनवाई प्रस्तावित थी, लेकिन किसी कारणवश अब अगली तिथि पर सुनवाई होनी है। इसी बीच आंदोलन से जुड़े नेताओं ने उग्र आंदोलन का संकेत दिया है। नेताओं ने साफ कहा कि उनका विरोध किसी जिले या क्षेत्र विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि वे न्याय, पारदर्शिता और संवैधानिक प्रक्रिया के सम्मान की मांग कर रहे हैं।

 

संघर्ष समिति का कहना है कि वर्ष 2020–21 में केंद्र सरकार की अधिकृत साइट निरीक्षण टीम ने दरभंगा की शोभन जमीन को एम्स के लिए अनुपयुक्त बताया था। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित रहते हुए वहां निर्माण कार्य शुरू करना न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने जैसा है। नेताओं ने इसे जल्दबाजी और नियमों की अनदेखी करार दिया है।

 

आंदोलनकारियों ने दो टूक कहा कि कोसी क्षेत्र के लगभग एक करोड़ लोगों की यह लड़ाई पिछले दस वर्षों से जारी है और इसे किसी भी तरह दबाया नहीं जा सकता। उन्होंने दोहराया कि वे सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का पूर्ण सम्मान करेंगे, लेकिन उससे पहले किसी भी तरह का निर्माण कार्य या निर्णय उन्हें स्वीकार नहीं है। संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि यदि मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।

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