बिहार के समस्तीपुर जिले में हाल ही में एड्स दिवस पर आयोजित जागरूकता रैली के दौरान कुछ विवादित नारे लगाए गए, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गए। रैली में लगाए गए नारों में से कुछ इस प्रकार थे – *’परदेश नहीं जाना बलम जी, एड्स नहीं लाना बलम जी’* और *’अगर पति आवारा है तो कंडोम ही सहारा है’*।
यह रैली सदर अस्पताल में आयोजित की गई थी, और इसे एचआईवी काउंसलर विजय कुमार मंडल ने नर्सिंग की छात्राओं के साथ मिलकर संचालित किया। नारे शुरू में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से लगाए गए थे, लेकिन उनकी भाषा और शैली को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आईं।
सोशल मीडिया यूजर्स ने वीडियो को देखकर नारों की आलोचना की। एक यूजर ने इसे घटिया बताते हुए सवाल उठाया कि क्या इन नारों से एड्स पर कोई असर पड़ेगा। वहीं, एक अन्य यूजर ने इसे पुरुषों के प्रति अनावश्यक तंज बताया। हालांकि कुछ यूजर्स ने जागरूकता पहल की सराहना करते हुए कहा कि कम से कम एक व्यक्ति को एड्स से बचाने में यह रैली मददगार साबित हो सकती है।
वायरल वीडियो के बाद मीडिया से बातचीत में सिविल सर्जन डॉ. एसके चौधरी ने बताया कि इस कार्यक्रम का आयोजन स्वास्थ्य विभाग की ओर से जनता में एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए किया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि नारों का चयन किसी सरकारी आदेश या एड्स सोसाइटी की ओर से नहीं किया गया था। यह स्लोगन उन एनजीओ की ओर से तैयार किए गए थे, जो रैली में शामिल हुए थे। डॉ. चौधरी ने स्वीकार किया कि उन्हें भी नारों की शैली अटपटी लगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता रैलियों में स्लोगन और संदेश का सही चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। संदेश जितना स्पष्ट और सभ्य होगा, जनता तक उसकी प्रभावशीलता उतनी ही अधिक होगी। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो ने इस मामले को और अधिक सुर्खियों में ला दिया।
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि स्वास्थ्य और जागरूकता अभियानों में संदेश देने की शैली पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। जागरूकता का उद्देश्य लोगों को सही जानकारी देना और सुरक्षित व्यवहार के प्रति प्रोत्साहित करना होता है, न कि किसी वर्ग या लिंग को निशाना बनाना।
समस्तीपुर की यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि जागरूकता अभियानों में स्लोगन और संदेश के चयन में संवेदनशीलता और सावधानी अत्यंत आवश्यक है, ताकि संदेश का उद्देश्य स्पष्ट रूप से जनता तक पहुंच सके।
