जिले के चौसा प्रखंड के रामपुर पंचायत अंतर्गत डेवी डीहरा गांव में मानवता और आपसी सौहार्द की एक अनोखी मिसाल देखने को मिली है। जहां एक हिंदू परिवार ने अपने बेटे की असमय मृत्यु के गहरे दुख को समाज के लिए प्रेरणा में बदलते हुए एक ऐसा निर्णय लिया, जिसकी चर्चा पूरे जिले में की जा रही है। सड़क हादसे में इकलौते सहारे को खो चुके इस परिवार ने मुस्लिम समाज के लिए एक बीघा जमीन कब्रिस्तान के रूप में दान कर इंसानियत को नई परिभाषा दी है।
18 नवंबर को देहरादून में हुए दर्दनाक हादसे ने जनार्दन सिंह के परिवार की खुशियों को पलभर में उजाड़ दिया। उनके बड़े पुत्र शिवम कुमार की एक तेज रफ्तार कार से टक्कर के कारण मौके पर ही मौत हो गई थी। शिवम न केवल परिवार की रीढ़ था, बल्कि कम उम्र में ही उसने अपने परिश्रम से देहरादून में तीन फैक्ट्रियां खड़ी कर दी थीं। परिवारवालों के अनुसार, इस वर्ष उसकी शादी की तैयारी भी की जा रही थी। लेकिन अचानक आई मनहूस खबर ने माता–पिता, भाई और पूरे परिवार को अंदर से तोड़ दिया।
शिवम के चाचा बृजराज सिंह बताते हैं कि शिवम का व्यक्तित्व बेहद उदार और समाजहित की सोच से भरा था। वह हमेशा जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे रहता था और गांव में भी उसकी छवि एक मिलनसार और नेकदिल युवक की थी। उसकी मृत्यु से पूरा गांव सदमे में है और हर कोई उसे भावुक होकर याद कर रहा है।
इसी गहरे शोक के बीच सोमवार को आयोजित श्राद्ध कार्यक्रम में जनार्दन सिंह ने अपने बेटे की स्मृति को अमर बनाने के लिए एक ऐसा फैसला लिया, जिसने सभी को भावुक कर दिया। परिवार ने मुस्लिम समुदाय के उपयोग के लिए एक बीघा जमीन कब्रिस्तान हेतु दान कर दी। बृजराज सिंह के अनुसार, “यह जमीन पूरी तरह से मुस्लिम समाज के सुपुर्द रहेगी, और इसका नामकरण ‘शिवम उर्फ अहीर धाम कब्रिस्तान’ के नाम से किया जाएगा।”
उन्होंने बताया कि शिवम की सोच में हमेशा भाईचारा और आपसी सौहार्द की भावना बसती थी। उसी विचारधारा को आगे बढ़ाने और शिवम की स्मृति को हमेशा जीवित रखने के लिए यह कदम उठाया गया है। परिवार चाहता है कि आने वाली पीढ़ियाँ भी शिवम को एक ऐसे युवक के रूप में याद करें, जिसने जीवन में इंसानियत को सबसे ऊपर रखा।
शिवम की असमय मौत ने परिवार पर दुखों का पहाड़ तोड़ दिया, लेकिन बेटे की अंतिम विदाई के बाद परिजनों ने अपने दर्द को परोपकार में बदल दिया। उनका यह निर्णय न केवल समाज के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह साबित करता है कि इंसानियत हर दर्द से बड़ी होती है।
यह कहानी आज पूरे जिले में मिसाल बन चुकी है—दर्द से उठी एक ऐसी रोशनी, जो समाज में मोहब्बत और भाईचारे का संदेश फैलाती रहेगी।
