बिहार विधानसभा चुनाव के बीच एक बार फिर खतवे जाति को लेकर राजनीतिक और कानूनी हलचल तेज हो गई है। इस मुद्दे ने राज्य की जातिगत राजनीति को नई दिशा दे दी है। दरअसल, खतवे जाति को अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा देने के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है।

इस जनहित याचिका को अधिवक्ता विकास कुमार पंकज के माध्यम से याचिकाकर्ता राजीव कुमार ने दाखिल किया है। याचिका में बिहार सरकार के उस निर्णय को चुनौती दी गई है, जिसके तहत वर्ष 2014 में खतवे जाति को अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की सूची से हटाकर अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता ने बताया कि बिहार सरकार ने परिपत्र संख्या **6455, दिनांक 16 मई 2014** जारी करते हुए खतवे जाति के लोगों को ‘**चौपाल जाति**’ के नाम पर अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र देने का आदेश दिया था। इस फैसले के तहत खतवे जाति के लोगों को चौपाल जाति के समान लाभ मिलने लगे।

राजीव कुमार ने अपनी याचिका में दावा किया है कि राज्य सरकार का यह निर्णय **असंवैधानिक** और **कानून के दायरे से बाहर** है, क्योंकि अनुसूचित जाति की सूची में संशोधन केवल भारत सरकार का अधिकार क्षेत्र है, राज्य सरकार का नहीं।

उन्होंने बताया कि इस मामले में **भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय**, जो अनुसूचित जातियों की सूची में संशोधन करने वाला नोडल मंत्रालय है, ने **12 दिसंबर 2018** को एक आदेश जारी कर बिहार सरकार के निर्णय को **अवैधानिक और गैर-कानूनी** बताया था।

मंत्रालय ने स्पष्ट कहा था कि यदि खतवे जाति के लोगों को चौपाल जाति के नाम पर अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र दिया जाता है, तो यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 341 का उल्लंघन मानी जाएगी।

राजीव कुमार ने पहले इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका को **पटना हाईकोर्ट** भेज दिया कि यह मामला राज्य के अधिकार क्षेत्र से संबंधित है, इसलिए पहले राज्य की उच्च न्यायालय में विचार होना चाहिए।

याचिकाकर्ता के वकील **विकास कुमार पंकज** ने कहा कि यह मामला बिल्कुल उसी तरह का है जैसा बिहार सरकार ने वर्ष 2015 में किया था, जब **तांति-ततवा जाति** को अत्यंत पिछड़ा वर्ग की सूची से हटाकर **पान जाति** के नाम पर अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया गया था।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने **भीमराव अंबेडकर विचार मंच बनाम बिहार सरकार (2024)** मामले में कठोर टिप्पणी करते हुए राज्य सरकार की अधिसूचना को रद्द कर दिया था। अदालत ने कहा था कि राज्य सरकार को अनुसूचित जातियों की सूची में मनमाने ढंग से परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है।

खतवे जाति पारंपरिक रूप से खेती-बाड़ी, शिल्पकारी और सुरक्षा कार्यों में संलग्न रही है और अब तक इसे अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की श्रेणी में गिना जाता रहा है। लेकिन 2014 की अधिसूचना के बाद इसे चौपाल जाति के समान मानकर एससी प्रमाण पत्र जारी किए जाने लगे।

अब, हाईकोर्ट में याचिका दाखिल होने के बाद यह मामला फिर से सुर्खियों में आ गया है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि चुनावी माहौल के बीच यह मुद्दा दलित और पिछड़े वर्ग की राजनीति को सीधा प्रभावित कर सकता है।

राज्य की राजनीति में पहले से ही जातिगत समीकरण अहम भूमिका निभा रहे हैं, और ऐसे में खतवे जाति को लेकर उठी यह कानूनी चुनौती सत्ताधारी दल और विपक्ष — दोनों के लिए नई परीक्षा बन सकती है।

 

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