गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र में जैसे-जैसे चुनाव की सुगबुगाहट तेज हो रही है, वैसे-वैसे स्थानीय समस्याओं को लेकर चौक-चौराहों पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बाढ़ और कटाव है, जिसने यहां के लोगों का जीवन वर्षों से अस्त-व्यस्त कर रखा है। गोपालपुर, इस्माईलपुर और रंगरा चौक प्रखंड की बड़ी आबादी हर साल गंगा और कोसी नदी की तबाही झेलती है। इन क्षेत्रों में बाढ़ और कटाव से सैकड़ों परिवारों का घर उजड़ चुका है, परंतु अब तक सरकार द्वारा इनके स्थायी पुनर्वास की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की जा सकी है।
विस्थापित परिवार तटबंधों, सड़कों और रेलवे लाइनों के किनारे अस्थायी रूप से बसने को विवश हैं। यह लोग खानाबदोश की तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं। गोपालपुर प्रखंड के बाबू टोला कमलाकुंड, बिंद टोली, सैदपुर, बीरनगर, बुद्धचक, डमरिया, अजमाबाद और सुकटिया बाजार जैसे गांव पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में आते हैं। अधिकांश परिवारों को आज तक न तो वासभूमि मिली है और न ही पिछले दो वर्षों से सरकारी राहत राशि (जीआर) दी गई है।
रंगरा चौक प्रखंड के तिनटंगा दियारा स्थित ज्ञानीदास टोला में गंगा के कटाव ने पिछले दो-तीन वर्षों में दो सौ से अधिक घरों को नदी में समा दिया है। वहीं, कोसी नदी के किनारे बसे सधुआ, चापर, मदरौनी, सहोता, कोसकीपुर और जहांगीरपुर बैसी गांवों के लोग हर साल बाढ़ और कटाव की मार झेलने को मजबूर हैं।
इस्माईलपुर प्रखंड की दो पंचायतें तो लगभग हर वर्ष बाढ़ से पूरी तरह जलमग्न हो जाती हैं। यही नहीं, गोपालपुर और इस्माईलपुर के प्रखंड सह अंचल कार्यालयों में भी बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाता है, जिसके कारण दफ्तरों का संचालन नवगछिया में स्थानांतरित करना पड़ता है। इससे सरकारी कामकाज ठप हो जाता है और आम जनता को भारी परेशानी उठानी पड़ती है।
गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र के मतदाता अब इस चुनाव में ऐसे प्रतिनिधि की तलाश में हैं जो इन पुरानी समस्याओं के स्थायी समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए। लोगों की अपेक्षाएं हैं कि इस बार का चुनाव केवल वादों का नहीं, बल्कि बाढ़ और कटाव से राहत दिलाने वाले वास्तविक कार्यों का चुनाव साबित हो।
