गया: बिहार की राजनीति में मगध क्षेत्र को सत्ता की चाबी कहा जाता है। इस क्षेत्र की **26 विधानसभा सीटें** किसी भी गठबंधन के लिए सरकार बनाने का रास्ता तय करती हैं। यही कारण है कि हर चुनाव में महागठबंधन और एनडीए दोनों की विशेष नजर मगध पर रहती है।
लेकिन इस बार **मगध के मुस्लिम समाज में गहरा असंतोष** पनप रहा है। वजह है — टिकट बंटवारे में लगातार नजरअंदाजी।
🔹 सत्ता की कुंजी मगध
ऐतिहासिक रूप से **मगध सत्ता का केंद्र** रहा है। गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा, अरवल जैसे जिले इस क्षेत्र में आते हैं। सामाजिक समीकरण की बात करें तो यहां **MY फैक्टर (मुस्लिम-यादव)** निर्णायक रहा है।
राजद इस समीकरण पर लंबे समय से भरोसा करती रही है, जबकि जदयू और भाजपा ने **अति पिछड़ा व सवर्ण वर्ग** के सहारे अपनी पकड़ बनाई है।
लेकिन अब मुस्लिम समाज का कहना है कि हर चुनाव में उनका वोट तो लिया जाता है, पर प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता।
**असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM** इस नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रही है।
🔹 टिकट बंटवारे पर सवाल
2025 के विधानसभा चुनाव से पहले जब टिकट बंटवारे की चर्चा शुरू हुई तो मगध के मुस्लिम नेता खुलकर बोलने लगे हैं।
**AIMIM** जहां मुस्लिम प्रत्याशी उतारने की रणनीति बना रही है, वहीं महागठबंधन में शामिल **राजद और कांग्रेस** पर अपने कोर वोट बैंक की अनदेखी का आरोप है।
सवाल यह है — क्या इस बार ‘जितनी आबादी उतनी हिस्सेदारी’ के वादे पर महागठबंधन कायम रहेगा या नहीं?
🔹 बिहार में 17.7% मुस्लिम आबादी, लेकिन प्रतिनिधित्व बेहद कम
बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब **17.70 प्रतिशत** है। बावजूद इसके विधानसभा और लोकसभा दोनों स्तरों पर मुस्लिम नेताओं का प्रतिनिधित्व बेहद सीमित है।
2020 के विधानसभा चुनाव में मगध की **26 सीटों में राजद ने सिर्फ दो मुस्लिम प्रत्याशी** उतारे थे।
कांग्रेस, जदयू, हम और भाजपा ने एक भी टिकट मुस्लिम समुदाय को नहीं दिया था।
नवादा से **मो. कामरान** और रफीगंज से **नेहाल अहमद** जैसे कुछ ही नेता अपवाद रहे हैं, जिनके दम पर मगध में मुस्लिम पहचान बची रही।
🔹 “राजद में जातिवाद, कांग्रेस में उपेक्षा”
लोकसभा चुनाव 2024 में राजद ने महागठबंधन के तहत 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से **9 यादव समुदाय** से थे, जबकि मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग से केवल दो-दो प्रत्याशी।
उर्दू लेखक **सैयद अहमद कादरी** कहते हैं —
> “जब हिस्सेदारी देनी ही नहीं है, तो बिहार में जाति गणना कराई ही क्यों? जब अधिकार की बात आती है तो ये पार्टियां चुप हो जाती हैं और डर फैलाने लगती हैं।”
कादरी आगे कहते हैं कि कांग्रेस और राजद दोनों मुस्लिमों को **वोट बैंक के रूप में तो मानती हैं**, लेकिन टिकट के समय “दूध में मक्खी की तरह निकाल फेंक देती हैं।”
🔹 कांग्रेस से भी नाराजगी
**अजहर इमाम**, जो गया जिले में कांग्रेस के सक्रिय नेता और टिकारी नगर परिषद के अध्यक्ष हैं, कहते हैं —
> “मुसलमान पार्टी के लिए काम करता है, लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है तो उसे भुला दिया जाता है। दक्षिण बिहार के मुसलमानों के लिए राजनीति में अब कुछ नहीं बचा है।”
वह बताते हैं कि गया जिले की 10 विधानसभा सीटों में **2010 के बाद कांग्रेस या राजद ने किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया**।
🔹 जदयू और हम पर भी सवाल
राजद और कांग्रेस की तरह एनडीए के घटक जदयू और हम पार्टी पर भी यही आरोप हैं।
2020 के चुनाव में इन दोनों दलों ने **मगध की किसी सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा।**
अजहर इमाम कहते हैं —
> “जब हर दल मुसलमानों को टिकट देने से हिचकता है, तो फिर उनके सामने क्या विकल्प बचता है? क्या सिर्फ वोट देना ही उनकी भूमिका रह गई है?”
🔹 बेलागंज का उदाहरण: गढ़ ढहा, संदेश साफ
2020 में बेलागंज सीट पर राजद को झटका लगा। यहां से राजद का गढ़ 34 साल बाद ढहा। मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा इस बार विभाजित हो गया था।
अजहर इमाम चेतावनी देते हैं —
> “अगर इस बार भी अनदेखी हुई तो कई विधानसभा क्षेत्रों में वही हाल होगा। मुसलमानों के पास अब विकल्प खुला है।”
🔹 टिकारी और शेरघाटी से मुस्लिम प्रत्याशी की मांग
इस बार कांग्रेस से **टिकारी**, और राजद से **शेरघाटी** सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारने की मांग तेज है।
अजहर इमाम का कहना है —
> “टिकारी में यादवों के बाद सबसे अधिक मुस्लिम वोटर हैं। अगर यहां मुस्लिम प्रत्याशी उतारा जाए तो जीत की संभावना मजबूत होगी।”
उनके अनुसार टिकारी में **72 हजार यादव, 32 हजार मुस्लिम और 38 हजार भूमिहार वोटर** हैं।
वह खुद इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बनने की दावेदारी जता चुके हैं।
🔹 गया की राजनीति में मुस्लिम पहचान का इतिहास
गया जिले की राजनीति में कभी **शकील अहमद खान** बड़ा नाम रहे।
उन्होंने **गुरुआ विधानसभा से तीन बार जीत दर्ज की**, लेकिन 2010 के बाद यह सिलसिला थम गया।
उनकी मौत के बाद राजद और कांग्रेस दोनों ने **किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा।**
अजहर इमाम कहते हैं —
> “जदयू ने भी 2010 के बाद गया जिले में किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। अगर कांग्रेस भी यही राह चली तो राजनीति में मुसलमानों की पहचान खत्म हो जाएगी।”
🔹 ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की बढ़ती सक्रियता
मगध में मुसलमानों की नाराजगी का फायदा उठाने की कोशिश अब **असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM** कर रही है।
पार्टी के गया नगर अध्यक्ष **आसिफ** का कहना है —
> “महागठबंधन को मुसलमानों के वोट सालों से मिलते रहे, लेकिन उन्हें सत्ता में जगह नहीं दी गई। अब मुसलमानों के सामने विकल्प मौजूद हैं।”
ओवैसी की रणनीति साफ है —
मगध और दक्षिण बिहार के उन इलाकों में अपनी पकड़ बनाना, जहां पारंपरिक रूप से राजद और कांग्रेस हावी रही हैं, लेकिन मुस्लिम नेतृत्व कमजोर है।
🔹 क्या ओवैसी और प्रशांत किशोर बनेंगे विकल्प?
राजनीतिक विश्लेषक **शब्बीर रज़ा** का कहना है —
> “2005 के बाद बिहार की राजनीति का पैटर्न बदला है। मुसलमानों की एक बड़ी संख्या एनडीए के साथ भी गई है। अगर इस बार भी महागठबंधन ने अनदेखी की, तो ओवैसी और प्रशांत किशोर जैसे नेता विकल्प साबित हो सकते हैं।”
वह बताते हैं कि मगध क्षेत्र में **AIMIM और जनसुराज** दोनों धीरे-धीरे संगठन विस्तार कर रहे हैं।
🔹 “उत्तरी नहीं, दक्षिणी बिहार पर भी ध्यान दें”
उर्दू लेखक **डॉ. सैयद अहमद कादरी** का कहना है —
> “कांग्रेस और राजद को उत्तरी बिहार की तरह दक्षिणी बिहार में भी मुसलमानों की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। जहां मुस्लिम प्रत्याशी होते हैं, वहां दूसरे दल भी मुस्लिम उम्मीदवार उतार देते हैं, जिससे वोट बंट जाता है।”
कादरी के अनुसार, राजद ने हाल ही में राज्यसभा की एक सीट पर भी मुस्लिम नेता को मौका नहीं दिया, जिससे समाज में नाराजगी गहरी है।
🔹 मुसलमानों के सामने खुले कई रास्ते
अगर इस बार भी टिकट बंटवारे में मुस्लिम समाज की उपेक्षा हुई, तो ओवैसी, प्रशांत किशोर, और कुछ स्थानीय स्वतंत्र उम्मीदवार नए विकल्प बन सकते हैं।
युवा मतदाताओं के बीच यह सोच बढ़ रही है कि **अगर प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा, तो वोट क्यों दिया जाए?**
AIMIM ने पहले ही घोषणा की है कि वह **मगध, शाहाबाद और दक्षिण बिहार के जिलों में 25 से अधिक सीटों पर तैयारी** कर रही है।
🔹 निष्कर्ष
मगध सिर्फ सत्ता का केंद्र नहीं, बल्कि **राजनीतिक संदेश का प्रतीक** भी है।
यहां से जो रुझान निकलता है, वही पूरे बिहार में असर डालता है।
अगर महागठबंधन और एनडीए ने इस नाराजगी को गंभीरता से नहीं लिया, तो 2025 का चुनाव कई राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है।
जैसा कि **अजहर इमाम** कहते हैं —
> “मुसलमान अब जागरूक है। वह सिर्फ तालियां नहीं बजाएगा, इस बार टिकट और हिस्सेदारी दोनों मांगेगा।”
