सहरसा नगर निगम में विकास कार्यों को लेकर एक बड़ा **घोटाला** सामने आया है। आरोप है कि नगर निगम क्षेत्र के **वार्ड संख्या 42** में जिस भवन का पूर्व में सांसद **शरद यादव** के मद से जिला योजना विभाग द्वारा सामुदायिक एवं विवाह भवन के रूप में निर्माण कराया गया था, उसी भवन को अब **65 लाख रुपये की लागत** से वृद्धा आश्रम में परिवर्तित करने का कार्य निगम द्वारा कराया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस योजना में नियमों और पारदर्शिता की पूरी अनदेखी की जा रही है। **न तो इसके लिए टेंडर निकाला गया है और न ही योजना विभाग से आवश्यक एनओसी ली गई है।** इसके अलावा निगम ने इस योजना को **15-15 लाख की पांच किश्तों में बांटकर काम कराना शुरू किया**, जिससे भ्रष्टाचार की आशंका और गहरी हो गई है।
स्थल पर न तो कोई **साइन बोर्ड लगाया गया है** और न ही यह स्पष्ट है कि कार्य का अभिकर्ता कौन है। इससे यह संदेह पैदा हो रहा है कि परियोजना की पूरी प्रक्रिया संदिग्ध और विभागीय तरीके से संचालित की जा रही है। स्थानीय लोग इस कार्यशैली को लेकर असंतोष जता रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि **सभी दस्तावेज और योजना की अनुमति का खुलासा किया जाए।**
कनिष्ठ अभियंता **अजय कुमार** ने कहा कि पूर्व में बने भवन को ही वृद्धा आश्रम में परिवर्तित किया जा रहा है और यह काम **विभागीय रूप से पांच हिस्सों में विभाजित** करके कराया जा रहा है। उन्होंने इस प्रक्रिया की औपचारिकता और कानूनी प्रावधानों पर ध्यान देने की बात कही। हालांकि, स्थानीय लोग इसे **घोषित नियमों और सार्वजनिक निरीक्षण की अनदेखी** मान रहे हैं।
स्थानीय समुदाय ने नगर निगम और योजना विभाग से **स्पष्ट जवाब और पारदर्शी कार्रवाई** की मांग की है। उन्होंने कहा कि यदि जल्द ही मामले की जांच नहीं हुई और कार्य में सुधार नहीं किया गया, तो वे उच्च अधिकारियों और विधायिका तक अपनी आवाज़ पहुंचाएंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के कार्यों में नियमों की अनदेखी और किश्तों में बजट वितरण अक्सर भ्रष्टाचार और गड़बड़ी की आशंका बढ़ाता है। नगर निगम की इस कार्यशैली ने न केवल स्थानीय लोगों का विश्वास खोया है, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही पर भी सवाल खड़ा किया है।
इस मामले में यह स्पष्ट है कि **वृद्धा आश्रम निर्माण कार्य अब गंभीर जांच का विषय बन गया है**, और इसे लेकर न केवल स्थानीय बल्कि मीडिया और सामाजिक संगठनों की भी निगरानी बनी हुई है।
