मुजफ्फरपुर में आयोजित *रघुवंश कर्पूरी विचार मंच* के कार्यक्रम में पहुंचे पूर्व सांसद आनंद मोहन ने अपने बयानों से बिहार की राजनीति में नई हलचल मचा दी है। उन्होंने साफ कहा कि आने वाले समय में बिहार की गद्दी पर कौन बैठेगा, यह तय करने का हक *भूराबाल* यानी भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ समाज के पास है।

 

दरअसल, हाल ही में राजद के वरिष्ठ नेता मंगली लाल मंडल ने *भूराबाल साफ करो* का नारा देते हुए एक विवादित बयान दिया था। इसी पर पलटवार करते हुए आनंद मोहन ने कहा कि बिहार की सत्ता किसी के नारों से नहीं बल्कि समाज की वास्तविक ताकत से तय होगी। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि *भूराबाल* की ताकत को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता।

 

अपने संबोधन में आनंद मोहन ने बिहार की मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि आज की राजनीति पूरी तरह बिखरी हुई है। कोई चिराग पासवान से लड़ रहा है, कोई जीतन राम मांझी से, कोई नीतीश कुमार से, तो कोई लालू यादव से। लेकिन असल निर्णय वही लोग करेंगे, जिन्होंने दशकों से बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाई है।

 

उन्होंने रघुवंश बाबू को याद करते हुए कहा कि वे सच्चे समाजसेवी थे, जिन्होंने जीवनभर लोगों के लिए काम किया। लेकिन राजनीति में बिखराव और कट्टरता देखकर वे दुखी रहते थे और दुखी मन से ही इस दुनिया से विदा हो गए। आनंद मोहन ने कहा कि उनकी कमी आज भी अधूरी सी लगती है।

 

इसी क्रम में उन्होंने सावरकर की प्रतिमा बनाए जाने पर चिंता जताई और कहा कि जब समाज को एकजुट करने की जरूरत है, तब ऐसी प्रतिमाएं राजनीतिक विभाजन को और गहरा करने का काम करेंगी।

 

आनंद मोहन ने साफ कहा कि यदि कोई *भूराबाल साफ करो* का नारा देगा तो उसका जवाब भी मजबूती से दिया जाएगा। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि बिहार की राजनीति में किसी समाज को दरकिनार करना आसान नहीं है और न ही सत्ता के सिंहासन से उनकी भूमिका को हटाया जा सकता है।

 

उनका यह बयान न केवल मंगली लाल मंडल के लिए सीधा संदेश माना जा रहा है बल्कि पूरे बिहार की सियासत में नई हलचल का कारण बन गया है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि क्या आनंद मोहन का यह बयान किसी बड़े राजनीतिक समीकरण की ओर इशारा है या फिर यह केवल विपक्षी नेताओं को चेतावनी भर है।

 

कुल मिलाकर, आनंद मोहन के इस बयान ने बिहार की राजनीति को गरमा दिया है। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भूराबाल की एकजुटता किसके पक्ष में जाती है और बिहार के सिंहासन पर किसे बिठाती है।

 

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