सांसद पर आरोप
विधायक ने कहा कि सांसद अजय मंडल कभी संसद में जाकर क्षेत्र की समस्याओं पर आवाज नहीं उठाते। “वे सिर्फ हाजिरी बनाकर मौज-मस्ती करते हैं। क्षेत्र के काम से उन्हें कोई मतलब नहीं है,” उन्होंने आरोप लगाया। इतना ही नहीं, उन्होंने जदयू की एक महिला नेत्री को लेकर भी अमर्यादित टिप्पणी की और कहा कि यह दोनों नेता क्षेत्र से पूरी तरह गायब हैं, केवल चुनाव के समय जगह-जगह अपनी फोटो लगवाते हैं।

गोपाल मंडल ने दावा किया कि कटाव रोकने के लिए उन्होंने स्वयं मुख्यमंत्री से मिलकर भरसक प्रयास किया और बिहार सरकार के स्तर पर जितना संभव था, उतना काम करवाया। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि स्थायी समाधान केवल केंद्र सरकार के सहयोग से ही संभव था, जिसके लिए सांसद को पहल करनी चाहिए थी। “अगर सांसद ने आवाज उठाई होती, तो कटाव रोकने के बड़े पैमाने पर काम हो सकते थे,” उन्होंने कहा।
जल संसाधन विभाग पर भी बरसे
विधायक ने जल संसाधन विभाग के अफसरों और कर्मचारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि कटावरोधी कार्य सही समय पर नहीं किए गए। “यह काम चैत्र-वैशाख में होना चाहिए था, जब जलस्तर नीचे होता है। अगर 40 फीट गड्ढा कर जियो बैग पैकिंग की जाती और ऊंचा तटबंध बनाया जाता, तो कटाव नहीं होता,” उन्होंने कहा।
गोपाल मंडल ने कटाव पीड़ितों को हरसंभव मदद का भरोसा भी दिलाया और कहा कि स्थिति बेहद भयावह है।
सांसद का पलटवार
विधायक के इन आरोपों और टिप्पणियों पर सांसद अजय मंडल ने तीखा पलटवार किया। उन्होंने कहा कि वह “गोबर में ढेला मारने” जैसे बयानबाजी के स्तर तक नहीं गिरना चाहते, लेकिन विधायक के इस आचरण को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
सांसद ने घोषणा की कि वह विधायक के खिलाफ थाने में प्राथमिकी दर्ज कराएंगे और कोर्ट में मानहानि का मुकदमा भी अलग से करेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि पार्टी नेतृत्व को पत्र लिखकर गोपाल मंडल को पार्टी से निकालने की मांग भी करेंगे।
अजय मंडल ने कहा, “विधायक ने जिस तरह से अभद्र और अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया है, वह न केवल व्यक्तिगत रूप से अपमानजनक है, बल्कि राजनीतिक मर्यादाओं के खिलाफ भी है। इस मामले में कानूनी और संगठनात्मक दोनों स्तर पर कार्रवाई होगी।”
राजनीतिक टकराव तेज
गोपालपुर और भागलपुर की राजनीति में विधायक और सांसद के बीच यह टकराव नया नहीं है, लेकिन इस बार मामला अधिक गंभीर हो गया है क्योंकि यह अभद्र टिप्पणी और व्यक्तिगत आरोपों तक पहुंच चुका है। गंगा कटाव जैसे गंभीर मुद्दे पर निरीक्षण के दौरान हुई यह बयानबाजी अब सीधे कोर्ट और पार्टी फोरम तक जाएगी।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह के सार्वजनिक विवाद से क्षेत्रीय विकास और कटाव रोकने की दिशा में पहल प्रभावित हो सकती है। वहीं, दोनों नेताओं के समर्थकों में भी तीखी बहस शुरू हो गई है।
अब देखना होगा कि पार्टी नेतृत्व इस मामले को कैसे संभालता है और कानूनी कार्रवाई का परिणाम क्या निकलता है। लेकिन इतना तय है कि गंगा कटाव के मुद्दे पर शुरू हुई बातचीत अब राजनीति की तेज लहरों में बदल चुकी है, जिसका असर आने वाले चुनावों तक रह सकता है।
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