मेहनत और आत्मविश्वास अगर पूंजी बन जाए, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। खगड़िया के एक शिक्षक ने इस कथन को अपने जीवन से साबित कर दिखाया है।

हम बात कर रहे हैं **सच्चिदानंद तांती** की, जो नेत्रहीन हैं, लेकिन आज सैकड़ों बच्चों के भविष्य को रोशन कर रहे हैं। वे **मध्य विद्यालय डुमरिया, खगड़िया** में हिंदी शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं और छठी से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को **ब्रेल लिपि के सहारे** शिक्षा दे रहे हैं।
### **दिव्यांगता को बनाया ताकत**
सच्चिदानंद तांती **जन्म से नेत्रहीन नहीं** थे। जब वे सात वर्ष के थे, तो बुखार के बाद आंखों में तकलीफ हुई। इलाज के नाम पर एक **झोलाछाप डॉक्टर** ने आंखों में दवा डाली, जिससे उनकी रोशनी चली गई। परिजनों ने बहुत प्रयास किया, लेकिन रोशनी वापस नहीं लौटी।
### **समाज को दिया करारा जवाब**
बचपन में जब लोग तंज कसते थे कि “इसे किसी मंदिर के बाहर बैठा दो”, तब सच्चिदानंद ने तय कर लिया कि वे **सम्मान से जीवन जीकर समाज को जवाब देंगे**।
### **नेत्रहीन विद्यालय से शुरू की पढ़ाई**
पिता ने उन्हें आरा के एक नेत्रहीन विद्यालय में दाखिला दिलाया, जहां उन्होंने कक्षा पहली से सातवीं तक की पढ़ाई की। एक दोस्त **रामाधार वर्मा** की सलाह पर वे दिल्ली गए और वहां **राजकीय नेत्रहीन विद्यालय** में आठवीं से 12वीं तक की शिक्षा पूरी की।
बाद में उन्होंने **दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी ऑनर्स और एमए** किया, साथ ही **चित्रकूट के विकलांग विश्वविद्यालय से बीएड** भी।
### **संघर्ष भरा सफर, लेकिन कभी रुके नहीं**
दिल्ली में पढ़ाई के दौरान उन्होंने **संगीत ट्यूशन** देकर अपने खर्चे निकाले। दो बच्चों को संगीत सिखाकर वे हर महीने 1000 रुपये कमाते थे। उनके **नेपाल निवासी मित्र शोभित यादव** ने भी आर्थिक मदद की।
### **शिक्षण में भी नई ऊंचाइयों को छुआ**
1998 में उन्होंने हरियाणा के एक नेत्रहीन विद्यालय में 2500 रुपये वेतन पर पढ़ाना शुरू किया। फिर 2002 में बिहार सरकार की नियोजित शिक्षक बहाली के तहत बांका जिले के एक विद्यालय में योगदान दिया।
आज वे **मध्य विद्यालय डुमरिया में हिंदी पढ़ाते हैं**। उनके पढ़ाने का तरीका इतना प्रभावशाली है कि शिक्षक आकांक्षा कुमारी कहती हैं:
> “मैं अंग्रेजी पढ़ाती हूं, लेकिन उनकी हिंदी की शैली ने मुझे हिंदी से प्रेम करना सिखाया।”
वहीं, प्रधानाध्यापक उत्पल कुमार कहते हैं:
> “बच्चे उनसे बेहद खुश रहते हैं। वे बच्चों को विषय से जोड़ते हैं, जो उन्हें औरों से अलग बनाता है।”
### **टेक्नोलॉजी और संवेदना का मिश्रण**
सच्चिदानंद जी बताते हैं कि उन्हें रास्तों की दूरी और मोड़ों का अनुमान अपने मस्तिष्क से हो जाता है। वे घड़ी छूकर समय बता सकते हैं और कक्षा में बच्चों की उपस्थिति बिना देखे महसूस कर लेते हैं।
### **अब घर के पास तबादला, मिली राहत**
पहले बांका जिले में सेवाएं दे रहे सच्चिदानंद तांती को अब डुमरिया स्थानांतरित कर दिया गया है, जो उनके घर से महज दो किलोमीटर दूर है। शिक्षिका विनीता कुमारी कहती हैं,
> “अब उन्हें आने-जाने में सहुलियत मिल गई है, और हमें एक सशक्त प्रेरणास्रोत के साथ काम करने का सौभाग्य।”
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### **एक संदेश समाज के लिए**
सच्चिदानंद तांती की कहानी समाज को यह सिखाती है कि **दृढ़ संकल्प और आत्मबल से हर बाधा पार की जा सकती है**।
नेत्रहीनता उनके लिए कोई सीमा नहीं बनी, बल्कि एक ऐसी शक्ति बनी जिसने उन्हें दूसरों की राह रोशन करने वाला **दीपक** बना दिया।
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