बिहार की अर्थव्यवस्था का गिरता ग्राफ: क्यों फंसा है राज्य विकास के संकट में? बिहार की आर्थिक बदहाली आज किसी से छुपी नहीं है। ऐतिहासिक रूप से समृद्ध रहा यह राज्य आज विकास की दौड़ में पिछड़ चुका है। कभी अंग्रेजी यात्री पीटर मुंडी ने 1630 के दशक में बिहार को व्यापारिक समृद्धि का केंद्र बताया था, लेकिन आज की तस्वीर इसके ठीक विपरीत है। बिहार की अर्थव्यवस्था की जर्जर हालत उसकी सरकारी नीतियों और संस्थागत ढांचे की विफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसका सबसे बड़ा असर राज्य के युवाओं और श्रमिक वर्ग पर पड़ा है, जो रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं।

कल-कारखानों की बदहाली
बिहार में उद्योग-धंधों की स्थिति लगातार गिरती जा रही है। बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के आंकड़े बताते हैं कि राज्य के GSDP में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी घटकर मात्र 7.6% रह गई है। वहीं, औद्योगिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, 2013-14 में बिहार में 3,132 कारखाने थे, जो अब घटकर 2,782 रह गए हैं। यह गिरावट राज्य की औद्योगिक अवनति को स्पष्ट रूप से दिखाती है।
बिहार में कल-कारखानों के बंद होने और नए उद्योगों के न खुलने का सबसे बड़ा कारण है बुनियादी सुविधाओं की कमी। पर्याप्त बिजली, जल, परिवहन, कुशल मानव संसाधन और पूंजी की उपलब्धता के बिना कोई भी उद्योग फले-फूलेगा नहीं। निवेशकों के लिए बिहार अभी भी आकर्षक गंतव्य नहीं बन पाया है।
MSME सेक्टर में पिछड़ापन
देशभर में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को रोजगार सृजन का बड़ा माध्यम माना जाता है। लेकिन बिहार इस क्षेत्र में भी पिछड़ गया है। भारत में कुल MSME का केवल 5.47% ही बिहार में है, जबकि उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 10.69% है। इसका मतलब है कि बिहार में छोटे उद्योगों को भी अपेक्षित सहायता और सुविधा नहीं मिल रही है।
MSME के विकास में वित्तीय सहायता, बैंकों से ऋण की सुविधा और प्रशासनिक सहूलियतें अहम भूमिका निभाती हैं, लेकिन बिहार में इन सभी क्षेत्रों में जटिलताएं बनी हुई हैं।
पलायन की बढ़ती समस्या
आर्थर लुईस के डुअल सेक्टर मॉडल के अनुसार जब किसी राज्य में औद्योगिक विकास नहीं होता, तब कृषि पर निर्भरता बढ़ जाती है। कृषि में सीमित रोजगार अवसरों के कारण मजदूर वर्ग बड़े पैमाने पर अन्यत्र पलायन करने को मजबूर होता है। यही स्थिति आज बिहार में है।
2011 की जनगणना के अनुसार, 2 करोड़ 72 लाख लोग बिहार से पलायन कर चुके हैं। आज यह संख्या और बढ़ गई है। हर साल लाखों युवा दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में जा रहे हैं। यह स्थिति राज्य की मानव संसाधन की बर्बादी है, जिसका असर सामाजिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर दिखाई दे रहा है।
श्रम बल भागीदारी दर और बेरोजगारी
नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस के PLFS सर्वे (अक्टूबर-दिसंबर 2024) के अनुसार, बिहार की श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) केवल 30.7% है, जो देश में सबसे कम है। इसका मतलब है कि राज्य में काम करने योग्य बड़ी संख्या में लोग या तो बेरोजगार हैं या हतोत्साहित होकर काम की तलाश ही छोड़ चुके हैं।
बेरोजगारी दर भी राष्ट्रीय औसत 6.4% की तुलना में बिहार में 8.7% है। यह आंकड़ा बताता है कि राज्य में रोजगार के अवसर बहुत कम हैं और युवाओं के पास विकल्प नहीं है।
बैंकों की भूमिका और क्रेडिट-डिपॉजिट रेश्यो
बिहार का क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात केवल 52.8% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 79.6% है। इसका अर्थ है कि बिहार के बैंकों में जितनी जमा राशि है, उसका बड़ा हिस्सा राज्य के बाहर निवेश हो रहा है। इससे बिहार में पूंजी की कमी बनी रहती है, जो उद्योगों के लिए आवश्यक निवेश में बाधा बनती है।
स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ) की स्थिति
औद्योगिक विकास के लिए स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ) की स्थापना जरूरी मानी जाती है। लेकिन बिहार इस मामले में भी पिछड़ा हुआ है। वर्तमान में बिहार में केवल 2 SEZ की प्रक्रिया चल रही है, जबकि उत्तर प्रदेश में 31, कर्नाटक में 66 और हरियाणा में 25 SEZ स्थापित हो चुके हैं। यह आंकड़े बिहार की औद्योगिक नीति की कमजोरी को उजागर करते हैं।
उद्योग विभाग के बजट में कटौती
बिहार सरकार के उद्योग विभाग के बजट में भी लगातार कटौती की जा रही है। वर्ष 2024-25 में उद्योगों के लिए केवल 1,960 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो कुल बजट का मात्र 0.62% है। जब तक सरकार उद्योग क्षेत्र को प्राथमिकता नहीं देगी, तब तक राज्य में रोजगार के अवसर पैदा नहीं होंगे।
समाधान क्या हो सकता है?
बिहार को औद्योगिक विकास के लिए कई ठोस कदम उठाने की जरूरत है। सबसे पहले निवेशकों का विश्वास जीतना होगा। बियाडा (BIADA) जैसी संस्थाओं की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लानी होगी। भूमि उपलब्धता, बिजली, पानी और परिवहन की समस्याओं को हल करना होगा।
इसके अलावा कृषि आधारित प्रोसेसिंग यूनिट्स, कोल्ड स्टोरेज, फूड पैकेजिंग यूनिट्स और गंगा जलमार्ग जैसे प्रोजेक्ट्स पर गंभीरता से काम करना जरूरी है। इससे न केवल किसानों को फायदा मिलेगा बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
निष्कर्ष
जब तक बिहार में औद्योगिक विकास की मजबूत आधारशिला नहीं रखी जाती, तब तक राज्य की अर्थव्यवस्था का उत्थान संभव नहीं है। बेरोजगारी और पलायन की समस्या तब तक बनी रहेगी जब तक सरकार ठोस नीति और पारदर्शी कार्यप्रणाली के साथ निवेश के लिए अनुकूल माहौल नहीं तैयार करती। बिहार के युवाओं के सपनों को साकार करने के लिए राज्य को अब कठोर और व्यावहारिक कदम उठाने की आवश्यकता है।
अपना बिहार झारखंड पर और भी खबरें देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

