बच्ची

डुमरिया गांव में रविवार सुबह उस समय हड़कंप मच गया जब गांव की झाड़ियों में एक नवजात बच्ची रोती मिली। ग्रामीणों की सूचना पर सुबह करीब सात बजे डायल 112 की पुलिस मौके पर पहुंची और बच्ची को गोपालपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) लेकर गयी। वहां बच्ची को प्राथमिक उपचार दिया गया, लेकिन बच्ची की हालत को देखते हुए बेहतर इलाज के लिए उसे सरकारी एंबुलेंस से भागलपुर सदर अस्पताल भेज दिया गया।

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सदर अस्पताल पहुंचने पर ड्यूटी पर मौजूद चिकित्सक ने नवजात बच्ची को भर्ती लेने से मना कर दिया। इस दौरान बच्ची की हालत गंभीर बनी रही। एंबुलेंस चालक ने मामले की जानकारी गोपालपुर सीएचसी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. सुधांशु कुमार को दी। डॉ. कुमार ने तत्काल मोबाइल से डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम मैनेजर (डीपीएम) मणिकांत झा को पूरी स्थिति की सूचना दी। डीपीएम के पहल पर काफी देर बाद बच्ची को सदर अस्पताल में भर्ती लिया गया और वहां से मायागंज अस्पताल रेफर किया गया।

प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. सुधांशु कुमार ने कहा कि वरीय पदाधिकारियों के निर्देश के अनुसार सीएचसी से नवजात बच्चों को इलाज के लिए सीधे सदर अस्पताल ही रेफर किया जाता है। उन्होंने बताया कि पूर्व में भी गोपालपुर से एक नवजात को सदर अस्पताल रेफर किया गया था, लेकिन समय पर भर्ती और इलाज नहीं मिलने के कारण उसकी मौत हो गई थी।

इस मामले में जानकारी लेने के लिए डीपीएम मणिकांत झा और सिविल सर्जन डॉ. अशोक प्रसाद से मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन दोनों अधिकारियों ने फोन रिसीव नहीं किया। इस पर ग्रामीण और सामाजिक कार्यकर्ताओं में आक्रोश देखने को मिला।

आरडीडी ने फोन नहीं उठाने को गंभीर मामला बताते हुए कहा कि स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण किसी भी नवजात की जान जोखिम में नहीं पड़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि पूरे मामले की जांच आरपीएम से करवा कर दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

ग्रामीणों ने कहा कि झाड़ियों में नवजात को फेंकना समाज में संवेदनहीनता का परिचायक है, लेकिन उससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि समय पर इलाज के अभाव में नवजात की जान पर बन आती है।

यह मामला जिला स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली को उजागर करता है, जहां एंबुलेंस में बच्ची तड़पती रही और अधिकारी फोन उठाने की भी जिम्मेदारी नहीं निभा सके। अगर समय पर चिकित्सीय व्यवस्था मिल जाती, तो बच्ची की हालत और बेहतर हो सकती थी।

स्थानीय लोगों ने प्रशासन से अपील की है कि अस्पतालों में नवजात बच्चों की इलाज में किसी भी प्रकार की लापरवाही पर कड़ी कार्रवाई की जाये और सभी अधिकारियों को निर्देश दिया जाये कि किसी भी इमरजेंसी कॉल को नजरअंदाज न करें।

यह घटना न सिर्फ डुमरिया गांव बल्कि पूरे जिले के लिए चेतावनी है कि स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्थाओं को सुधारने की तत्काल आवश्यकता है ताकि किसी मासूम की जान सिस्टम की लापरवाही के कारण न जाये।

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