नवगछिया। करगिल युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों से लोहा लेकर शहीद हुए गोपालपुर प्रखंड के तिरासी गांव निवासी हवलदार रतन सिंह के शहादत को 26 वर्ष बीत गये, लेकिन उनका परिवार अब भी सरकारी वादे के पूरे होने का इंतजार कर रहा है। शहीद रतन सिंह के पुत्र और शिक्षक रुपेश कुमार अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि पिता की शहादत के बाद राज्य सरकार ने परिवार को पांच एकड़ खेतिहर जमीन देने की घोषणा की थी, लेकिन आज तक उस जमीन पर शहीद परिवार का दखल और कब्जा नहीं हो सका है।

सरकार द्वारा पांच एकड़ जमीन देने के बदले तीन एकड़ बिहार सरकार की जमीन कागज पर दी गयी, परंतु वास्तविकता यह है कि उस जमीन पर परिवार को आज तक कब्जा नहीं मिल सका है। शिक्षक रुपेश कुमार बताते हैं कि इस मामले में कई बार डीएम, नवगछिया एसडीओ और एसपी को आवेदन देकर गुहार लगाई गई, लेकिन हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला।
परेशानी की बात यह भी है कि जिस जमीन का पूर्व में कोई मालिक था, वही व्यक्ति आज भी उस जमीन को जोत-आबाद कर रहा है। ऑनलाइन जमीन की रसीद पिता शहीद रतन सिंह के नाम से ही दिख रही है, किंतु जमीन पर कब्जा शहीद परिवार को अब तक नहीं मिला है। रुपेश कुमार कहते हैं कि पिता की शहादत के बदले मिली जमीन को पाने के लिए भी 26 वर्षों से संघर्ष करना पड़ रहा है, यह हमारे लिए बहुत ही पीड़ादायक और शर्मनाक स्थिति है।
गौरतलब है कि कारगिल युद्ध के दौरान 29 जून 1999 की मध्य रात्रि में बिहार रेजिमेंट को पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाने का आदेश मिला था। उस समय 16,470 फीट की ऊंचाई पर स्थित जुबेर टॉप नामक महत्वपूर्ण चौकी को प्राप्त करने के लिए हवलदार रतन सिंह ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। दो जुलाई तक चली भीषण लड़ाई में दो पाकिस्तानी कमांडो सहित कई घुसपैठिये मारे गये थे।
हवलदार रतन सिंह ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए और ऑपरेशन कारगिल विजय में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। रतन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1959 को हुआ था और 28 फरवरी 1979 को उन्होंने भारतीय सेना में भर्ती होकर देश की सेवा का संकल्प लिया। अपने सेवा काल में वे मुख्यालय 42 पैदल ब्रिगेड तथा 46 बंगाल बटालियन एनसीसी में भी तैनात रहे।
शहादत के 26 वर्ष बाद भी रतन सिंह की यादें उनके घर की दीवारों पर टंगी सेना की वर्दी में उनकी तस्वीरों में जीवंत नजर आती हैं। परिवार को आज भी वह दिन याद है जब पूरे गांव की आंखों में आंसू और गगनभेदी नारों के बीच तिरंगे में लिपटा रतन सिंह का पार्थिव शरीर गांव पहुंचा था।
शहीद रतन सिंह के परिवार की यह व्यथा सिर्फ एक परिवार की नहीं है, बल्कि उन सभी शहीद परिवारों की आवाज है जिन्हें सरकार की ओर से किये गए वादे अब भी पूरे होने का इंतजार है। रुपेश कुमार ने राज्य सरकार से पुनः मांग की है कि उनके शहीद पिता के सम्मान और परिवार के अधिकार के लिए जल्द से जल्द जमीन पर दखल और कब्जा दिलाया जाए ताकि सरकार की ओर से किये गए वादे का सम्मान हो सके और शहीदों के परिवार की तकलीफें कम की जा सकें।
शहीद रतन सिंह के परिवार का यह दर्द और उनके अधिकार की लड़ाई शासन व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, साथ ही यह भी याद दिलाता है कि शहीदों के परिवारों के सम्मान की रक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितना कि उनके द्वारा दिये गये बलिदान का सम्मान करना।
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