बारिशबारिश

बिहार में मानसून की पहली बारिश के साथ ही बाढ़ जैसे हालात बनने लगते हैं, और इसी के साथ एक बार फिर से पुलों की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। 2023 में जिस तरह पुलों के गिरने का सिलसिला देखा गया था, वही तस्वीर अब 2025 में भी दोहराई जा रही है। गया जिले के डोभी प्रखंड अंतर्गत निलांजना नदी पर बने कोठवारा-बरिया पुल की हालत ने एक बार फिर से बिहार में हो रहे निर्माण कार्यों की सच्चाई उजागर कर दी है।

भ्रष्टाचार
 


गुरुवार को आई मूसलधार बारिश के बाद इस पुल के तकरीबन सभी पायों में दरारें आ गईं। कुछ पायों में तो कई इंच तक का डिफरेंस भी देखा गया, जिससे यह पुल अब कभी भी धराशायी हो सकता है। जिला प्रशासन ने इसे देखते हुए इस पुल पर हर तरह के आवागमन पर रोक लगा दी है। मौके पर पहुंचे शेरघाटी अनुमंडल के एसडीएम मनीष कुमार ने सुरक्षा के मद्देनजर लोहे का बैरियर लगवाने का निर्देश दिया है, ताकि कोई भी व्यक्ति पुल से होकर गुजर न सके।

इस पुल को लेकर अब कई तरह की बातें सामने आ रही हैं। ग्रामीणों की मानें तो करीब 15 करोड़ की लागत से बने इस पुल में भ्रष्टाचार की खूब परतें चढ़ाई गई थीं। निर्माण की शुरुआत 2015 में हुई थी और ग्रामीणों ने तभी से कार्यशैली पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। लेकिन जब ग्रामीणों ने भ्रष्टाचार का विरोध किया, तो उन्हें धमकाया गया और झूठे मुकदमों में फंसा दिया गया। कई ग्रामीणों पर कंपनी ने एफआईआर भी दर्ज करवा दी थी, जिसके बाद ग्रामीणों को चुप्पी साधनी पड़ी।

पूर्व सरपंच उपेंद्र यादव बताते हैं कि जब उन्होंने इस पुल के निर्माण कार्य में गड़बड़ी देखी, तो प्रशासन को पत्र लिखे लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टा उनके ऊपर और अन्य ग्रामीणों पर झूठे केस लाद दिए गए। उन्होंने कहा, *”जब प्रशासन ने भी हाथ खड़े कर दिए, तो हमें मजबूरी में विरोध बंद करना पड़ा।”*

पुल की गुणवत्ता पर भी सवाल उठते रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया। सीमेंट और सरिया की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं थी। यही वजह रही कि बारिश के पहले ही दौर में पुल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। ग्रामीण विनोद कुमार कहते हैं, *”हमें शुरुआत से ही लग रहा था कि यह पुल ज्यादा दिन नहीं चलेगा। अब वही हो रहा है। तेज बारिश में पायों में दरारें आ गई हैं, पुल कभी भी गिर सकता है।”*

सबसे गंभीर बात यह रही कि इस पुल को 2022 में बिना किसी औपचारिक उद्घाटन के ही चालू कर दिया गया था। ग्रामीणों के अनुसार, इसके पीछे भी भ्रष्टाचार और जल्दबाजी की मानसिकता थी। पुल का उद्घाटन टालकर बिना किसी निरीक्षण के आवागमन शुरू करवा दिया गया।

यह पुल सिर्फ डोभी प्रखंड के लिए नहीं, बल्कि झारखंड के भी कई गांवों के लिए महत्वपूर्ण था। यह झारखंड की सीमा से सटा हुआ है और प्रतिदिन सैकड़ों लोग इस रास्ते का उपयोग करते हैं। अब पुल क्षतिग्रस्त होने से दोनों राज्यों के लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

एसडीएम मनीष कुमार ने कहा है कि पूरे मामले की जांच की जा रही है। उन्होंने कहा, *”कहां तकनीकी चूक हुई है, इसे देखा जा रहा है। सभी पहलुओं पर जांच कर रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेजी जाएगी।”*

ग्रामीणों की मांग है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो और जिन अधिकारियों और ठेकेदारों ने इस पुल के निर्माण में लापरवाही बरती, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलेगी, ऐसे हादसे दोहराए जाते रहेंगे।

बिहार में यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले 2024 में भी भागलपुर के पीरपैंती क्षेत्र में चौखंडी पुल धराशायी हो गया था। बख्तियारपुर और समस्तीपुर के बीच बन रहे फोरलेन पुल का स्पैन भी गिरा था। 2023 में तो मानो पुल गिरने की घटनाएं आम बात बन गई थीं। छपरा, मधुबनी, भागलपुर सहित कई जिलों से इस तरह की खबरें आई थीं, जिसने राज्य के निर्माण कार्यों की साख पर बट्टा लगा दिया था।

इन घटनाओं के बाद हर बार जांच के नाम पर खानापूर्ति होती है और फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। सवाल यह है कि क्या इस बार कुछ अलग होगा? क्या इस बार दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी?

बिहार में पुल-पुलियों के निर्माण को लेकर जिस तरह से भ्रष्टाचार की खबरें सामने आ रही हैं, वह न सिर्फ सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती हैं, बल्कि आम जनता की सुरक्षा से जुड़ा गंभीर मामला भी बन जाती हैं। यह जरूरी हो गया है कि ऐसे मामलों की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो, और जो भी दोषी पाए जाएं—चाहे वे अफसर हों या ठेकेदार—उन्हें सख्त सजा दी जाए।

वरना हर साल की बारिश के साथ पुलों के गिरने की यह कहानी बिहार के विकास को डुबोती रहेगी।

 

 

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By admin

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