भागलपुर: बिहार सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री डॉ. सुनील कुमार ने भागलपुर के सर्किट हाउस में प्रेस को संबोधित करते हुए राज्य सरकार की पर्यावरणीय योजनाओं, जलवायु परिवर्तन से निपटने की तैयारियों और भावी रणनीतियों पर विस्तार से जानकारी दी। इस दौरान उन्होंने कई अहम बिंदुओं पर प्रकाश डाला, लेकिन कुछ सवालों पर दिए गए उनके जवाबों ने लोगों को हैरान भी कर दिया।
इस प्रेस वार्ता में भाजपा के भागलपुर जिला अध्यक्ष संतोष शाह सहित अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी और कार्यकर्ता मौजूद थे। सभी ने मंत्री का पुष्पगुच्छ और अंगवस्त्र भेंट कर स्वागत किया। डॉ. सुनील कुमार ने कहा कि राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है। जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौती से निपटने के लिए राज्य स्तर पर गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पूरे बिहार में हरियाली को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जैसे “हरियाली मिशन” और “जल-जीवन-हरियाली अभियान”। उन्होंने दावा किया कि 2004 की तुलना में 2024 में राज्य का वन क्षेत्र 50% बढ़ा है, जो एक बड़ी उपलब्धि है। डॉ. सुनील कुमार ने यह भी कहा कि वृक्षारोपण के लिए जल्द ही एक विशेष अभियान शुरू किया जाएगा जिसमें आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी।
मंत्री ने बताया कि पर्यावरण दिवस के अवसर पर राज्य सरकार ने एक विशेष गीत का विमोचन किया है जिसमें बाल्मीकि नगर, दुर्गापुरी, राजगीर, बौंसी और मंदार पर्वत जैसे प्राकृतिक स्थलों को दर्शाया गया है। उन्होंने इसे बिहार की हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य का प्रमाण बताया। उन्होंने कहा कि यह गीत पर्यावरण के प्रति गर्व और जागरूकता को बढ़ाएगा।
डॉ. सुनील कुमार ने मंदार पर्वत पर रोपवे सेवा को लेकर भी बड़ी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह सेवा 15 से 20 दिनों के भीतर दोबारा शुरू कर दी जाएगी, जिससे पर्यटकों को सुविधा होगी। उन्होंने दावा किया कि इस रोपवे परियोजना को स्वीकृति दिलाने में उनकी प्रमुख भूमिका रही है।
मंत्री ने स्कूली छात्रों और युवाओं को पर्यावरण जागरूकता से जोड़ने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में पर्यावरण शिक्षा को अधिक प्रभावी बनाने की योजना का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण कोई एक दिन का कार्य नहीं, बल्कि यह सतत प्रयास का विषय है। इसके लिए समाज के हर वर्ग को अपनी भूमिका निभानी होगी।
प्रेस वार्ता के दौरान जब पत्रकारों ने सुल्तानगंज के अगवानी पुल के ढहे हुए मलवे को हटाने की मांग पर सवाल किया, तो मंत्री का जवाब चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “शादी के समय बिरहा के गीत नहीं गाए जाते।” उनके इस बयान से पत्रकारों और उपस्थित जनों में हैरानी देखी गई। इस जवाब को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं कि अगर पर्यावरण मंत्री पुल के मलवे जैसे गंभीर मुद्दे पर प्रतिक्रिया नहीं देंगे, तो जिम्मेदारी कौन लेगा?
इसके अलावा जब भागलपुर शहर में सड़कों के किनारे सूख चुके और खतरनाक पेड़ों को लेकर सवाल उठे, तो मंत्री ने विभागीय जिम्मेदारी को जनता पर डालते हुए कहा, “लोग खुद विभाग को आवेदन देकर बताएं कि कौन सा पेड़ सूखा है और कौन गिरने वाला है।” इस बयान से यह सवाल उठता है कि क्या यह जिम्मेदारी विभाग की नहीं बनती कि वह निरीक्षण कर खतरे की पहचान कर कार्रवाई करे?
मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि वे भागलपुर के निवासी नहीं हैं और उन्हें स्थानीय स्तर की छोटी-छोटी समस्याओं की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि वे अधिकारियों से बात करके ही कोई समाधान निकाल सकते हैं।
इस पूरे संवाद से यह बात सामने आई कि जहां एक ओर मंत्री राज्यव्यापी योजनाओं और आंकड़ों को लेकर सजग नजर आए, वहीं दूसरी ओर स्थानीय मुद्दों पर उन्होंने या तो टालने वाला रवैया अपनाया या फिर गैर-जिम्मेदाराना बयान दिए। पर्यावरण मंत्रालय से जुड़ी हुई जनता की अपेक्षाएं, विशेष रूप से उन समस्याओं को लेकर हैं जो रोजमर्रा के जीवन में सीधा असर डालती हैं, जैसे सूखे पेड़ गिरने का खतरा या पुल का मलबा हटाने की आवश्यकता।
मंत्री के इस दौरे से यह तो स्पष्ट हो गया कि बिहार सरकार पर्यावरण संरक्षण के बड़े दावों के साथ आगे बढ़ रही है, लेकिन स्थानीय समस्याओं को नजरअंदाज करने या उन पर असंवेदनशील टिप्पणी करने से जनता की चिंता और बढ़ जाती है। अब देखना यह होगा कि उनके बयान के बाद विभाग इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाता है या नहीं।
समापन में मंत्री ने अपील की कि लोग अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं और पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली अपनाएं, तभी जलवायु परिवर्तन की चुनौती से प्रभावी रूप से निपटा जा सकता है।
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