बिहार में अनोखा फैसला: पति का दो पत्नियों के बीच हुआ बंटवारा, एक सप्ताह में चार दिन पहली पत्नी के साथ और तीन दिन दूसरी पत्नी के साथ रहने का समझौता

बिहार से एक ऐसा अनोखा मामला सामने आया है, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया है। इस मामले में एक पति को दो पत्नियों के बीच “रोटेशन सिस्टम” के आधार पर बांट दिया गया है। पति को हफ्ते में चार दिन अपनी पहली पत्नी के साथ और तीन दिन दूसरी पत्नी के साथ रहना होगा। यह फैसला पूर्णिया जिले के पुलिस परिवार परामर्श केंद्र में लिया गया, जो अब पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है।

कैसे सामने आया मामला?

यह मामला तब उजागर हुआ जब पूर्णिया जिले के मीरगंज थाना क्षेत्र की रहने वाली पूनम देवी, जो शंकर साह की पहली पत्नी है, अपने पति की शिकायत लेकर एसपी कार्तिकेय शर्मा के पास पहुंची। पूनम देवी ने आरोप लगाया कि उसके पति शंकर साह ने बिना उसकी जानकारी के दूसरी शादी कर ली है और उसके साथ-साथ उनके बच्चों के खर्चे भी देने बंद कर दिए हैं।

पूनम देवी और शंकर साह की शादी साल 2000 में हुई थी। दोनों के दो बेटे हैं, जिनकी उम्र क्रमशः 22 और 18 साल है और दोनों कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं। पूनम ने अपने आवेदन में बताया कि दूसरी शादी के बाद शंकर ने न केवल उसे नजरअंदाज करना शुरू कर दिया बल्कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा भी उठाना बंद कर दिया।

मामला परामर्श केंद्र को सौंपा गया

एसपी कार्तिकेय शर्मा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे पूर्णिया के पुलिस परिवार परामर्श केंद्र को भेज दिया। परामर्श केंद्र ने सबसे पहले पूनम देवी की पूरी बात सुनी और फिर शंकर साह को बुलाकर उनसे इस मामले पर सफाई मांगी।

पुलिस परिवार परामर्श केंद्र के सदस्य दिलीप कुमार दीपक ने बताया कि शंकर साह ने सात साल पहले उषा देवी नामक महिला से दूसरी शादी कर ली थी। उन्होंने बताया कि शंकर साह और पूनम देवी की शादी को 24 साल हो चुके हैं और उनके बड़े बेटे की उम्र 22 साल है, जबकि छोटा बेटा 18 साल का है।

क्यों की दूसरी शादी?

शंकर साह ने दूसरी शादी की वजह घरेलू विवाद और प्रताड़ना को बताया। उनका कहना था कि पहली पत्नी के साथ लगातार झगड़े और विवाद के कारण उन्होंने दूसरी शादी का फैसला लिया। हालांकि, दूसरी शादी के बाद भी पारिवारिक समस्याएं खत्म नहीं हुईं और मामला इतना बढ़ गया कि एसपी के पास पहुंच गया।

परिवार परामर्श केंद्र ने कैसे सुलझाया मामला?

परिवार परामर्श केंद्र के सदस्यों ने काफी सोच-विचार और बातचीत के बाद दोनों पत्नियों और शंकर साह को एक अनोखे समाधान के लिए तैयार किया। इस समाधान के तहत यह तय हुआ कि शंकर साह सप्ताह में चार दिन अपनी पहली पत्नी पूनम देवी के साथ और बाकी तीन दिन अपनी दूसरी पत्नी उषा देवी के साथ रहेंगे।

शंकर साह ने न केवल इस समझौते को मान लिया बल्कि अपने दोनों बेटों की पढ़ाई-लिखाई का खर्च उठाने के लिए भी सहमति दी। उन्होंने कहा कि वे हर महीने बच्चों की पढ़ाई के लिए 4000 रुपये देंगे।

फैसले पर सभी हुए सहमत

परामर्श केंद्र ने इस समझौते को आधिकारिक रूप देने के लिए एक बॉन्ड तैयार किया, जिस पर शंकर साह और उनकी दोनों पत्नियों ने खुशी-खुशी हस्ताक्षर कर दिए। परामर्श केंद्र के सदस्य दिलीप कुमार दीपक ने कहा,

“हमने कहा कि इससे बढ़िया और क्या हो सकता है। हमने किसी पर कोई फैसला नहीं थोपा। शंकर ने खुद सप्ताह में चार दिन पहली पत्नी के साथ और तीन दिन दूसरी पत्नी के साथ रहने का प्रस्ताव दिया और हमने इसे मंजूरी दे दी।”

समझौते के बाद खुश होकर लौटे सभी

इस फैसले के बाद दोनों पत्नियां पूरी तरह संतुष्ट नजर आईं और बॉन्ड पर दस्तखत करने के बाद खुशी-खुशी अपने-अपने घर लौट गईं। पुलिस परिवार परामर्श केंद्र के इस फैसले की चारों तरफ सराहना की जा रही है।

क्या कहता है समाज और कानून?

इस तरह के मामले भारतीय समाज में काफी संवेदनशील माने जाते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दूसरी शादी तभी वैध मानी जाती है जब पहली पत्नी जीवित न हो या फिर उसने तलाक ले लिया हो। हालांकि, ऐसे मामलों में सामाजिक और पारिवारिक दबाव के कारण कानूनी लड़ाई अक्सर लंबी और पेचीदा हो जाती है।

इस मामले में दोनों पत्नियों की सहमति से पति को “रोटेशन सिस्टम” पर रखने का अनोखा समाधान निकाला गया है, जिसने एक बड़ा विवाद टाल दिया।

इस फैसले की सामाजिक प्रतिक्रिया

इस फैसले को लेकर आम लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे व्यावहारिक और शांतिपूर्ण समाधान बता रहे हैं तो कुछ इसे सामाजिक मूल्यों के खिलाफ मान रहे हैं। हालांकि, परामर्श केंद्र की भूमिका की काफी प्रशंसा हो रही है, जिसने बिना किसी कानूनी झंझट के मामला सुलझा दिया।

निष्कर्ष

पूर्णिया के इस अनोखे मामले ने यह दिखा दिया है कि जटिल पारिवारिक विवादों को कानूनी लड़ाइयों के बजाय आपसी समझौते और बातचीत से भी सुलझाया जा सकता है। जहां एक तरफ यह फैसला सामाजिक मानदंडों को चुनौती देता नजर आता है, वहीं दूसरी तरफ यह व्यावहारिक समाधान की मिसाल भी पेश करता है।

पुलिस परिवार परामर्श केंद्र के इस फैसले ने न केवल एक टूटते परिवार को फिर से जोड़ा, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि किसी भी विवाद को संवाद और समझदारी से सुलझाया जा सकता है।

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