बिहार के सहरसा में भगवान कृष्ण के पुत्र सांब द्वारा स्थापित कन्दाहा का सूर्य मंदिर ऐतिहासिक ही नहीं धार्मिक दृष्टिकोण से भी देश भर में अपना एक अलग महत्व रखता है। कुछ दशक पहले देश के कोणार्क मंदिर की तरह स्थापित इस मंदिर में भी देश भर के पर्यटक पहुंचते थे दर असल प्रसासन के उदासीनता के कारण अब यहां कम ही श्रधालु आते हैं पर छठ पूजा के मौके पर यहां की रौनक कुछ और ही होती है। ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मन की हर मुराद पूरी होती है ।
जिसकी वजह से दूर दराज के पर्यटक यहां पूजा अर्चना के लिए आते है। सहरसा जिला मुख्यालय से लगभग तेरह किलोमीटर दूर महिषी प्रखंड अंतर्गत कन्दाहा ग्राम स्थित अति विशिष्ट सूर्य मंदिर।सूर्य पुराण और महाभारत के मुताबिक़ श्री कृष्ण के बेटे साम्ब के द्वारा स्थापित इस सूर्य मंदिर की श्रेष्ठता इस बात से प्रामाणित होती है की इस मंदिर में राशियों में प्रथम मेष राशि के साथ सूर्य की प्रतिमा स्थापित है।मान्यता है की बैसाख महीने में जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की पहली किरण इसी सूर्य प्रतिमा और उनके रथ पर पड़ती है।
इस मंदिर में सभी बारह राशियों की कलाकृति के साथ-साथ सूर्य यंत्र भी मौजूद है। यही नहीं इस मंदिर में अष्टभुजी गणेश भी विराजमान हैं जो विरले ही कहीं किसी मंदिर में देखने को मिलेगा। शिव की अदभुत प्रतिमा के अलावे सूर्य की दोनों पत्नियां संज्ञा और छाया की प्रतिमा भी यहाँ मौजूद है।लोक आस्था का महापर्व छठ पर यहां दूरदराज से लोग पहुंचते है और भगवान भास्कर को अर्ध्य देते है।यह मंदिर के भीतर का नजारा। अष्टधातु के इस सूर्य प्रतिमा से लगता है की विशेष आभा टपक रही है। सूर्य की प्रतिमा के ठीक ऊपर मेष राशि मौजूद हैं।
कुल बारह राशियाँ सूर्य की प्रतिमा को घेरा बनाकर यहाँ मौजूद हैं।बगल में अष्टभुजी गणेश हैं तो सामने सूर्य यंत्र रखा हुआ है। देवों के देव महादेव भी यहाँ सूर्य के दोनों तरफ विराजमान हैं। सूर्य की दोनों पत्नी संज्ञा और छाया भी यहाँ पर हैं। सूर्य के रथ और रथ में जुटे सातों घोड़े भी यहाँ पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराये हुए है। इस मंदिर के जानकार और इतिहास में अभिरुचि रखने वाले इलाके के लोग बताते हैं की इस मंदिर का निर्माण 1453 ईसवी में हुआ है। हांलांकि कन्दाहा में सूर्य की प्रतिमा तो द्वापर युग में श्री कृष्ण के पुत्र साम्भ ने स्थापित किया था। बताना लाजिमी है की साम्भ ने बारह राशियों में अलग-अलग बारह जगह सूर्य की प्रतिमा की स्थापना की थी जिसमें से कन्दाहा भी एक है।
यह मंदिर एतिहासिक दृष्टिकोण से अति विशिष्ट और यहाँ की कलाकृति अद्वितीय है। महा पर्व छठ जिसमें भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है पुजारी का कहना है की तमाम गुण संपन्न इस मंदिर परिसर में एक पवित्र जल कुण्ड बना हुआ था जो अब कुएं की शक्ल में है। इस कुएं के जल की खासियत है की इसके जल को पीने और शरीर पर लगाने से गंभीर से गंभीर चर्म रोग ठीक हो जाता है।कन्दाहा सूर्य मंदिर मंदिर को लेकर विद्वानों में एक मतैक्य नहीं है ।
मंदिर के चौखट पर उत्कीर्ण शक संवत 1357 (सन 1435 ई.)के अभिलेख से ज्ञात होता है की इसे राजा नरसिंह देव ने बनवाया था जिन्होंने कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था वहीँ महाभारत व् पुराण के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण के बेटे साम्बू ने बारह राशि में 12 सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया जिसमे प्रथम मेष राशि का मंदिर यहीं है। आईए आपको सुनाते है क्या कुछ कह रहे है यहां के पुजारी व स्थानीय लोग