क्या बिहार की सत्तारूढ़ पार्टी या यूं कहें कि पिछले 18 साल से सरकार चल रही पार्टी में सब कुछ पटरी पर है या फिर कोई अंदरूनी कलह के कारण पार्टी को जमीनी स्तर पर नुकसान उठानी रही पड़ रही है? क्या इस पार्टी के सर्वमान्य नेता नीतीश कुमार कुछ बहुत बड़ा प्लानिंग कर रहे हैं ? क्या नीतीश कुमार विपक्षी दलों की नई गठबंधन में उचित मुकाम नहीं मिलने के कारण बाहर होने की प्लानिंग पहले से तैयार कर रखी है? यह तमाम सवाल उस वक्त उठने शुरू हो गए जब नीतीश कुमार के बेहद कभी भी माने जाने वाले एक नेता ने बड़ा खुलासा किया।
विलय के बाद का नाम भी तय
दरअसल, जनता दल (सेक्युलर) के सुप्रीमो एचडी देवगौड़ा ने बड़ा खुलासा किया है। इन्होंने कहा है कि – नीतीश कुमार उनसे काफी संपर्क में थे और वो नीतीश कुमार उनके साथ पार्टी का विलय चाहते थे। इतना ही नहीं इसको लेकर रणनीति भी तैयार कर ली गई थी और नाम भी तय कर लिए गए थे। इस विलय के बाद जो नाम तय किए गए थे वह नाम था जनता दल फेडरल।
कांग्रेस के कारण बैकफुट पर आ
इतना ही नहीं देवगौड़ा और नीतीश कुमार में यह भी तय हो गया था कि- नीतीश कुमार पीएम चेहरे बनेंगे और देवगौड़ा उन्हें अपना पूरी तरह से समर्थन देंगे। लेकिन उसे समय बात इसलिए दब गई क्योंकि कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव होने थे। हालांकि बाद में कांग्रेस के कुछ नेताओं के दबाव और अंदरुनी कारणों से नीतीश कुमार को ऐसा करने को रोका गया। इतना ही नहीं यही वजह रही कि जनता दल (सेक्युलर) को विपक्षी दलों की पहली बैठक में आमंत्रित ही नहीं किया गया।
ऐसे में अब एचडी देवगौड़ा ने कहा है कि- क्या मुझे इस उम्र में ऐसे अपमान जाने चाहिए? यही वजह रही कि हमने या फैसला किया की जो भी होगा हम अकेले रहेंगे। या फिर कोई नया विकल्प बाद में देखेंगे। हालांकि, नीतीश कुमार से आज ही मेरी दोस्ती इतनी ही गहरी है जितनी पहले थी वह मेरे अच्छे मित्र थे और रहेंगे।
नीतीश को भरोसा नहीं ?
लेकिन इन सबों के बीच जो सबसे बड़ा सवाल वह बना हुआ है वह यह है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि नीतीश कुमार जदयू का विलय करना चाहते थे जबकि नीतीश कुमार की पार्टी बिहार में खुद को मजबूत स्थिति में बता रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी एक सशक्त और बेहद ही मजबूत छवि के नेता है। इतना ही नहीं उनका दावा है यह भी है कि- वह पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाएंगे और जदयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाएंगे। इसके बावजूद नीतीश कुमार विलय का ख्याल लाना ही अपने आप में एक बड़ा सवाल उत्पन्न करता है।
बिहार के बाद केंद्र की सोच
वहीं, राजनीतिक जानकारों की माने तो नीतीश कुमार यह भलीं – भांति समझ चुके हैं कि उनकी पार्टी में उनके बाद कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो बिहार की राजनीति में उनके जितना पकड़ रखता हो और नीतीश कुमार के पास कांग्रेस या राजद की तरह कोई विरासत की राजनीति करने वाले नेता भी नहीं है। ऐसे में नीतीश कुमार जानते हैं यदि वह बिहार की राजनीति से खुद को दूर करते हैं तो फिर उनकी पार्टी की छवि वर्तमान जैसी नहीं रहेगी। इस लिहाज नीतीश कुमार खुद की पार्टी का विलय कर खुद को केंद्र में स्थापित करना चाहते थे।
समझौता को तैयार
इधर, दबी जुबान में चर्चा इस बात की भी है कि नीतीश कुमार यह भली-भांति समझ चुके हैं कि जदयू में उनके बाद उनके जैसा गहरी लोकप्रियता और अन्य कई तरह के राजनीतिक समझ रखने वाला शायद ही कोई दूसरा नेता हो। यही वजह है कि नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन बनाने का फैसला किया और खुद को केंद्र के नेता के तौर पर सेट करने की रणनीति तैयार करने में लग गए नीतीश कुमार भले ही मीडिया में यह बयान देते हो कि उन्हें कुछ भी नहीं बनना है। लेकिन दबी जुबान में जो चर्चाएं हैं वह यही है कि नीतीश कुमार अब बिहार की राजनीति करना नहीं चाहते हैं अब वह खुद को केंद्र की राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार अब कोई भी समझौता करने को तैयार हैं।
भाजपा को दिलवाया था ऑफर
उधर, इन बातों का उसे समय और अधिक गहराई मिल जाती है जब उनके बेहद करीबी रहे नेता और भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी यह कहते हैं कि जदयू के कई नेताओं के तरफ से या ऑफर दिया गया कि नीतीश कुमार को कहीं का राज्यपाल बना दीजिए या फिर केंद्र में कोई अच्छा पद दे दीजिए वह वापस से आपके साथ आने को तैयार हैं। लेकिन उन्हें इस बार इसलिए वापस से नहीं लाया जा रहा है क्योंकि उनके वापस आने से भाजपा में अंदुरूनी कलह की स्थिति बन जाएगी और भाजपा के कार्यकर्ता काफी नाराज हो जाएंगे