आसान शब्दों में कहें तो जैसे आप किसी इमारत की छत से कोई पत्थर सीधे फेंकें तो जिस तरह वो आगे बढ़ते हुए नीचे आता है कुछ उसी तरह चांद भी नीचे आएगा. इसे आप कुछ कुछ विमान से पैराशूट लैंडिंग जैसा भी समझ सकते हैं। जिस तरह विमान से पैराशूट पहनकर कूदने वाले छाताधारी कुछ दूर हवा में आगे बढ़ते हुए धीरे धीरे नीचे आते हैं, वैसे ही विक्रम लैंडर भी चांद के वातावरण में नियंत्रित गति से आगे बढ़ते हुए लैंड करेगा. लैंडिंग टाइम से करीब आधे घंटे पहले मिशन कंट्रोल विक्रम के लैंडिंग की कवायद शुरू कर देगा.
चंद्रमा की कक्षा में 25 किमी से 134 किमी के दायरे में मौजूद चंद्रयान-3 का वेग करीब 1600 मीटर प्रति सेकंड है. इसे विक्रम लैंडर में लगे इंजन को फायर कर धीरे-धीरे कम किया जाएगा. जब यह घट कर करीब आधे से भी कम रह जाएगा तो फिर लैंडिंग के फाइन ब्रेकिंग फेज की शुरुआत होगी. रफ और फाइन ब्रेकिंग फेज में गति को घटाने के लिए विक्रम लैंडर में लगे 4 थ्रॉटल इंजन का इस्तेमाल किया जाएगा. इन इंजन के फायरिंग से उत्पन्न बल विक्रम का गतिमान वेग घटाने में मदद करेगा, जिससे इसका नीचे उतरने आसान हो सकेगा. साथ ही इंजन फायरिंग के जरिए ही इसकी दिशा को भी नियंत्रित किया जाएगा ताकि यह अपने पैरों पर लैंड कर सके.
वहीं विक्रम लैंडर जब निर्धारित लैंडिंग साइट से करीब 10 मीटर की ऊंचाई पर होगा तो इसके सभी इंजन बंद कर दिए जाएंगे, ताकि यह सीधे अपने पैरों पर नीचे आ सके. यह लैंडर के टर्मिनल डिसेंट फेज़ का अंतिम चरण होगा. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान विक्रम लैंडर पर लगे विशेष सेंसर और ऑनबोर्ड कम्प्यूटर लगातार इसकी दिशा को नियंत्रित करते रहेंगे. साथ ही इसे पूर्व निर्धारित लैंडिंग साईट तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे जो पहले से तय है.
गौरतलब है कि रफ ब्रेकिंग फेज के बाद लैंडिंग से महज 7 मिनट पहले फाइन ब्रेकिंग फेज़ में ही चन्द्रयान-2 हादसे का शिकार हो गया था, जिस समय चन्द्रयान-2 के विक्रम लैंडर से सम्पर्क टूटा था तब उसकी गति 48 मीटर प्रति सेकंड गुणा 59 मीटर प्रति सेकंड की थी. निर्धारित टाइमलाइन के मुताबिक लैंडिंग के करीब दो घण्टे बाद विक्रम लैंडर के भीतर से प्रज्ञान रोवर बाहर आएगा. विक्रम की लैंडिंग के वक्त उड़ने वाली धूल मिशन कंट्रोल से जुड़े सेंसर को नुकसान न पहुंचाए इसके लिए उसके बैठने का इन्तज़ार किया जाएगा.
धीरे धीरे पहले विक्रम लैंडर से रैंप खोल जाएगा, फिर प्रज्ञान रोवर का सोलर पैनल उठाया जाएगा और फिर उसे धीरे से रैंप के सहारे बाहर निकाला जाएगा. इसके बाद अगले 14 दिन तक विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर न केवल चन्द्रमा पर रहते हुए परीक्षण करेंगे. बल्कि उनसे जुड़ी सभी अहम सूचनाएं धरती पर भेजेंगे. विक्रम लैंडर और प्रज्ञान से हासिल सूचनाओं को ISRO वैज्ञानिकों तक पहुंचने में एक अहम सेतु होगा वह ऑर्बिटर जिसे चन्द्रयान-2 के साथ 2019 में छोड़ा गया था.
यूं तो मिशन चन्द्रयान-2 के साथ चन्द्रमा की कक्षा में पहुंचाए गए ऑर्बिटर की उम्र उस वक्त केवल एक साल ही मानी गई थी, लेकिन यह ऑर्बिटर अब भी न केवल सही सलामत है बल्कि लगातार सूचनाएं भी भेज रहा है. चन्द्रमा की कक्षा में ऑर्बिटर की मौजूदगी भी ISRO वैज्ञानिकों की क्षमता और काबिलियत का नमूना है. चन्द्रयान-3 के मिशन ऑपरेशन कॉम्पलेक्स ने पहले से चन्द्रमा की कक्षा में मौजूद चन्द्रयान2 के ऑर्बिटर और लैंडिंग के लिए तैयार हो रहे विक्रम लैंडर के बीच सम्पर्क स्थापित कर दिया है.
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