ऐसे कई राजनीतिक किस्से हैं जिनको सुनकर आपको हैरानी होगी. उत्तर प्रदेश के एक सीएम ऐसे भी थे जो खुद को चोर कहते हैं. इतना ही नहीं वे विपक्षी नेताओं के आरोपों को हंसी में टाल दिया करते है. यूपी सीएम के पद पर वह तीन बार रहे. विरोधियों ने उन पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाए, लेकिन जब उनका निधन हुआ तो उनके बैंक अकाउंट में सिर्फ 10 हजार रुपये ही मिले. बता दें कि ये सीएम कोई और नहीं चंद्रभानु गुप्ता थे. कांग्रेस पार्टी से संबंध रखने वाले सीएम चंद्रभानु गुप्ता विरोधियों के आरोपों पर मजाक करते हुए खुद कहते थे कि गली-गली में शोर है, चंद्रभानु गुप्ता चोर है.
कम उम्र में आजादी की लड़ाई में कूदे
काफी कम उम्र में ही चंद्रभानु गुप्ता आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. 1919 में चंद्रभानु गुप्ता ने रॉलेट एक्ट का विरोध किया था, तब उनकी उम्र महज 17 साल थी. फिर जब 1928 में साइमन कमीशन भारत आया तब भी चंद्रभानु गुप्ता ने विरोध प्रदर्शन बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. चंद्रभानु गुप्ता इस दौरान करीब 10 बार जेल गए. इसके अलावा काकोरी कांड में भी क्रांतिकारियों को बचाने के लिए वे आगे आए और उनका पक्ष रखा.
तीन बार बने यूपी के मुख्यमंत्री
जान लें कि चंद्रभानु गुप्ता ने सन् 1926 में कांग्रेस पार्टी जॉइन कर ली थी. वे यूपी कांग्रेस के कई अहम पदों पर रहे. चंद्रभानु गुप्ता कांग्रेस की यूपी यूनिट के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष तीनों पदों पर रहे. यूपी की राजनीति में चंद्रभानु गुप्ता का काफी दबदबा था. चंद्रभानु गुप्ता तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री बने. पहली बार चंद्रभानु गुप्ता 1960 से 1963 तक यूपी के सीएम रहे. 1967 में एक बार फिर जीतकर उन्होंने सरकार बनाई लेकिन वह महज 19 दिन ही चल सकी. इसके बाद चंद्रभानु गुप्ता 1969 में चुनाव जीते और तीसरी बार सीएम पद पर काबिज हुए.
समाज सेवा में लगा चंद्रभानु गुप्ता का मन
बता दें कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता मूल रूप से अलीगढ़ के बिजौली के थे. 14 जुलाई 1902 को उनका जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम हीरालाल था. वे एक समाज सेवक थे. पिता की तरह चंद्रभानु गुप्ता का मन भी समाज की सेवा में लग गया था. चंद्रभानु गुप्ता आर्य समाज से जुडे़ थे. चंद्रभानु गुप्ता की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा लखीमपुर खीरी जिले में हुई थी. इसके बाद वह लखनऊ आ गए थे. लखनऊ में उन्होंने कानूनी की पढ़ाई की और फिर वहीं वकालत शुरू कर दी थी.
गौरतलब है कि 11 मार्च 1980 को चंद्रभानु गुप्ता का निधन हो गया था. इसके बाद जब उनके बैंक अकाउंट की जानकारी सामने आई थी तो उसमें केवल 10 हजार रुपये मिले थे. कहा जाता है कि चंद्रभानु गुप्ता के राजनीति दोस्त कम और दुश्मन ज्यादा था. लेकिन हर कोई चंद्रभानु गुप्ता को उनके अनोखे अंदाज के लिए याद करता है.