दीपावली के अवसर पर ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण बच्चियों द्वारा घरौंदा बनाने की प्रथा है। माना जाता है कि  घरौंदा बनाना  सुख समृद्धि का प्रतीक है। कहलगांव अनुमंडल के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी घर की बेटियां परंपरागत तरीके से दीपावली के अवसर पर घरौंदा बनाती हैं।

गांव में कई घरों में दर्जनों बच्चियां रविवार को घरौंदा बनाते दिखी जो अंतिम रूप दे रही थी। अमडंडा  थाना क्षेत्र के बोड़ा बमिया गांव की प्रिया रानी घरौंदा को अंतिम रूप दे रही थी। मौजूद  वृद्ध महिला  सुनैना देवी ने बताया कि बच्चियां जब बड़ी होती हैं तो उन्हें उनकी मां घरौंदे के बहाने पूरी गृहस्थी समझाने की कोशिश करती है।  किस तरह घर बनता है। किस तरह घर में खाने के सामान होते हैं और किस तरह अपनों को वह परोसा जाता है। लड़कियां दीपावली में इस खेल को खेलते खेलते गृहस्थ जीवन की बारीकियां खुद ही सीख जाती हैं। इस तरह दीपावली की परंपरा मनोरंजन के साथ साथ बेटियों में संस्कार भी दे जाती है। ग्रामीण बच्चियों द्वारा बनाए जाने वाला घरौंदा बेटियों में संस्कार भरता है। घरौंदा बनाने में भले ही इनके बड़े इनका मार्गदर्शन करते हैं। लेकिन ज्यादातर काम बच्चियां खुद करतीं हैं। घरौंदा के लिए ईंट लाना, मिट्टी को पानी से गोद कर घर जोड़ना उनका रंग रोगन करना इन सारे कामों में बच्चियों को बड़ा मजा आता है। घरौंदा बनाने की शुरुआत बच्चियां दीपावली से चार दिन पहले ही करती है। जब घरौंदा बन जाता तो दीपावली की रात यहां दीप जलाकर पहले पूजा करती हैं फिर खाना बनाने वाले छोटे बर्तनों में लड्डू वगैरह रख कर बड़ों को देती हैं। बदले में उन्हें अपने बड़ों से तोहफा भी मिलता है। बता दें कि दीपावली पर घरौंदा बनाए जाने की परम्परा सदियों पुरानी है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि यह सुख, समृद्धि का प्रतीक है।

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