बिहार के भागलपुर में गंगा नदी पर बने विक्रमशिला सेतु पर किसान जान हथेली पर रखकर खेतीबाड़ी कर रहे हैं। तस्वीरें बेहद चौंकाने वाली हैं। पुल के नीचे एक पेड़ और रस्सी के सहारे उतरना जान जोखिम में डालने जैसा ही है।

बिहार के भागलपुर जिले के विक्रमशिला सेतु पर एक बेहद ही भयभीत कर देने वाला दृश्य देखने को मिला। मौके से ली गई तस्वीरों को देखकर एक बार सवाल यही उठता है कि जीवन यापन के लिए क्या कोई इस तरह कर सकता है? जान हथेली पर लिए तकरीबन 65 फीट ऊंचाई से गंगा की तलहटी पर अपनी फसलों की देखरेख और उन्हें बाजार तक ले जाने के लिए किसान रस्सी के सहारे नीचे उतरते और चढ़ते हैं। पुल और गंगा की रेत तक पहुंचने का बांध यहां एक जंगली पेड़ है।

जलेबी के पेड़ के सहारे दर्जनों किसान हर रोज विक्रमशिला सेतु से गंगा की रेत पर उतरते हैं और उगाई गई सब्जी और अन्य फसलों को काटकर बाजार के लिए ले जाते हैं। इन खेतों के किसान और उनके साथ उतरते मजदूरों में बच्चे भी शामिल होते हैं। किसान वीलेंद्र महतो ने कहा, ‘गंगा नदी की दो धाराओं के बीच हम बासा बनाकर रहते हैं। आने-जाने का कोई साधन नहीं है। यही एक विकल्प है इसलिए पेड़ के सहारे इस तरह चढ़ते-उतरते हैं। अब तो आदत हो गई है। सब्जी और अन्य फसलों को रस्सी के सहारे पुल के ऊपर ले जाते हैं। फिर इसे बाजार तक पहुंचाते हैं।’

इसी तरह भूली देवी कहती हैं, ‘क्या करें, यही है-जो है। 20 सालों से यहां गंगा की तलहटी पर खेतीबाड़ी कर रहे हैं। जीवन यापन का विकल्प भी यही है। डर तो लगता है लेकिन पेट का सवाल भी है।’

इन्हीं किसानों के जत्थे में शामिल बिनोदी महतो, राजो महतो, भगवान महतो आदि ने बताया कि सब्जियों में परवल-ककड़ी-टमाटर-खीरा, बैंगन और तरबूज की खेती करते हैं तो वहीं गेहूं-मकई भी उपजाया जाता है। बड़े क्षेत्र में बासा बना हुआ है। ये लगभग 500 एकड़ के दायरे में है और दर्जनों किसान अपनी जीविका चला रहे हैं।

किसानों का कहना है कि हम लोग गरीब किसान हैं मजदूर हैं हम लोगों के पास नदी पार करने के लिए नाव नहीं है। अगर नाव रहता तो यह जान हथेली पर लेकर हम इस तरह से पैरों रस्सी के सहारे पुल से नहीं नीचे उतरते।

किसान ललीत मडल नकुल मंडल अंमबोखा देवी बताते हैं कि पापी पेट व माल मवेशी के लेली के जान के रिस्क लेयलय पेड (गाछी) के सहारे अगर खेत के निगरानी नय होतय तो फसल माल मवेशी चराय लेतय।

किसानों ने बताया कि हम लोग अगर इस तरह से नहीं चलेंगे उतरेंगे तो फसल ही समय पर नहीं हो पाएगा जिस तरह से कार्तिक महीने में बाढ़ का पानी खेत में घुसा है इससे काफी नुकसान ही है। मालूम हो कि किसानों ने बताया कि इस जगह पर शंकरपुर अलालपुर राघोपुर इसमाईलपुर गांव के अधिकतर किसान का खेती इस सेतु के नीचे एवं इसके आसपास है इस खेत में मकई परवल करेला तरबूज ककड़ी आदि की खेती होता है। जिसमें लाखों रुपया किसानों द्वारा खर्च कर बड़े किसानों से बटेदारी या ठीका पर लेकर खेती करते हैं। ऐसे विक्रमशिला सेतु का लंबा हिस्सा भाग इस्माइलपुर थाना में अंतर्गत आता है।

इस्माइलपुर पुलिस बताते हैं कि पुल पर इस तरह की मामले कई बार हम लोगों को देखने को मिलता है। हम लोग हिदायत भी देते हैं लेकिन किसानों का कहना है कि जब तक में हम दो से 5 किलोमीटर घूम कर खेत पर पहुंचेंगे तब तक यहां से उतरकर हम लोग आधा काम कर लेते हैं।

किसान आशुतोष मंडल ने कहा कि कि अगर हम लोग पुल के सहारे नीचे नहीं आते जाते हैं तो हम लोगों का काम खराब हो जाता है दूध बहुत ही रिस्क का खरीद बिक्री का काम है। अगर हम जितना नीचे से घूम कर किसानों तक पहुंचेंगे उससे पहले हम लोग रस्सी के सहारे यहीं पर ले आते हैं।

कई बार बाल _बाल बचे

पुल पर इस तरह से चढ़ने उतरने को लेकर के कई बार घटना होते होते भी बचा है एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि एक बार एक व्यक्ति के द्वारा रस्सी के सहारे नीचे जा रहा था बीच में रस्सी टूट गया जिससे उसकी किसान को पैर और कमर में चोट भी आया किसी तरह इलाज के बाद वह ठीक हुआ लेकिन यहां पर इस तरह का रिस्क लेकर काम करना खतरों से खेलने के बराबर है।

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