भागलपुर के प्रसिद्ध भगवती मंदिर में हर साल सैकड़ों लोग विषैले सांप के जहर उतरवाने आते हैं. माना जाता है कि यहां मंदिर के नीर पीने से सांप का जहर भी बेअसर हो जाता है. 2 अगस्त यानी कल यहां विषेश पूजा का आयोजन किया जाना है. जिसमें श्रद्धालु 500 बकरों की बलि देते हैं.

भागलपुर: बिहार के भागलपुर जिले में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां मंदिर के नीर को पीने से सांप का जहर भी बेअसर हो जाता है. जिले के बिहपुर दक्षिण पंचायत के सोनवर्षा गांव में स्थित बड़ी भगवती मंदिर में सर्पदंश से पीड़ित लोग इलाज कराने आते हैं. मान्यता है कि यहां विषैले सांप के डंस से पीड़ित लोगों को जीवनदान मिलता है. यहां हर साल नागपंचमी के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है. जिसमें शामिल होने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु दूरदराज से आते हैं.

100 वर्ष पूर्व मंदिर की स्थापना: सोनवर्षा के बड़ी भगवती मंदिर का इतिहास करीब सौ साल पुराना है. मंदिर कमेटी के अध्यक्ष जगदीश ईश्वर और सचिव जीवन चौधरी के मुताबिक यह गांव पहले कोसी दियारा में बसा था. तब से गांव में यह मंदिर था. गंगा नदी का कटाव होने के बाद गांव के लोग यहां आकर बस गए. उसके बाद फिर से मंदिर बनाया गया. पहले यह मंदिर घास-फूस का था लेकिन बाद में ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा करके पक्के मंदिर का निर्माण कराया. इस मंदिर में लोग बहुत दूर-दूर से अपनी मनोकामना मांगने आते हैं.

500 बकरे की दी जाती है बलि: इस भगवती मंदिर में सावन के शुक्ल पक्ष पंचमी धूमधाम से मनाया जाता है. इसी दिन विशेष पूजा के बाद 500 बकरों की बलि दी जाती है. इसके साथ ही वैसे श्रद्धालु भी पूजा-पाठ और बलि देने का आयोजन करते हैं, जिनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है. मंदिर की प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां हर साल हजारों की तदाद में श्रद्धालु मुंडन करवाने पहुंचते हैं. मंदिर के पुजारी राधाकांत झा ने कहा कि यह एक ऐसा मंदिर है, जहां की सभी जाति-धर्म समुदाय के लोग अपनी मन्नत मांग सकते हैं.

अगर मनोकामना पूर्ण होती है तो लोग फिर दोबारा वहां मुंडन करवाने एवं बलि देने भी आते हैं. यहां सावन के शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन विशेष पूजा होती है. इस दौरान 500 बकरे की बलि दी जाती है. मनोकामना पूर्ण होने पर लोग मुंडन करवाने भी पहुंचते हैं” -अर्चना देवी, श्रद्धालु

मंदिर को लेकर कई कहानियां: पुजारी राधाकांत झा ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना गणेश नाम के एक व्यक्ति ने 100 साल पहले की थी. जिन्होंने बरुनय स्थान से मूर्ति को लाकर यहां स्थापित किए थे. उन्होंने कहा कि हमारे तीन पूर्वज इस मंदिर की सेवा करते आ रहे हैं. मैंने खुद 50 सालों से इसकी सेवा की है. उन्होंने बताया कि जहां सभी जाति धर्म के लोग पहुंचते हैं. सावन के शुक्ल पक्ष पंचमी को मंदिर प्रांगण में मेला लगता है. इस दौरान विशेष पूजा अर्चना के साथ-साथ बलि देने का धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है.

मेरी बेटी को बच्चा नहीं हो रहा था तो मैंने भी मन्नत मांगी थी. यहां से नीर भस्म अपनी बेटी को लगाया उसके कुछ महीने के बाद मेरी बेटी को बच्चा हुआ .अगर किसी पुरुष या महिला को सांप या कोई बिच्छू काट ले तो मंदिर का नीर पीने से उसका विष खत्म हो जाता है” रानी देवी, श्रद्धालु

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