राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों की ओर से सियासी तानाबाना बुना जा रहा है. एक तरफ सोनिया गांधी ने विपक्षी एकता की पहल की तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने मोर्चा संभाल लिया है. ऐसे में ममता बनर्जी ने 22 दलों की बैठक बुलाई है, जिसमें कई ऐसे भी दल हैं जो कांग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहते हैं.
राष्ट्रपति पद के चुनाव का बिगुल बज चुका है. सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए सियासी गोलबंदी के साथ उम्मीदवार तय करने की मशक्कत शुरू कर दी है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बातचीत कर राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारने का प्लान रखा, लेकिन उसे अमलीजामा पहनाने में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी जुट गई हैं. ममता बनर्जी ने बुधवार को दिल्ली में बुलाई गई बैठक में उन दलों को भी न्योता भेजा गया है, जो कांग्रेस से दूरी बनाकर रखते हैं. इस तरह से राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए को मात देने के लिए विपक्ष साझा उम्मीदवार उतारने की सहमति बनाने का चक्रव्यूह रच रहा है?
सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन, एनसीपी के मुखिया शरद पवार, सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी से बातचीत की. वहीं, ममता बनर्जी ने 22 विपक्षी दलों को पत्र लिखकर राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में 15 जून को दिल्ली में बुलाई गई बैठक में आने की अपील की थी. इनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के सीएम जगन रेड्डी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर, केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी आदि शामिल हैं.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दिल्ली पहुंचते ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्षी उम्मीदवार तय करने की औपचारिक मशक्कत शुरू हो गई है. विपक्षी नेताओं की बुलाई गई बैठक से पहले ममता ने मंगलवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात कर राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी रणनीति पर चर्चा की. वहीं, विपक्ष का साझा उम्मीदवार तय करने के लिए बुलाई गई ममता की बैठक में कांग्रेस और वामदलों ने बैठक में शामिल होने का फैसला किया है ताकि विपक्षी खेमे में किसी तरह के बिखराव न हो सके.
राजनीतिक विश्वलेषकों का मानना है कि वक्त का तकाजा है कि खुद परिपक्वता दिखाई जाए, ताकि विपक्ष विभाजित नजर नहीं आए. इसलिए पार्टी नेतृत्व ने राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और रणदीप सुरजेवाला को बैठक में भेजने का फैसला किया है. ममता की बैठक बुलाने से नाराज वामदल भी शरद पवार के समझाने-बुझाने के बाद बैठक में अपना प्रतिनिधि भेजने पर सहमत हो गए हैं.
ममता बनर्जी और शरद पवार के दिल्ली पहुंचते ही राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी सक्रियता तेज हो गई. ममता ने पवार से मुलाकात की तो माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और भाकपा महासचिव डी राजा ने शरद पवार से उनके घर जाकर मुलाकात की. इस दौरान येचुरी और राजा ने ममता के एकतरफा बैठक के फैसले पर एतराज जताया, लेकिन तब पवार के समझाने के बाद दोनों ही दलों के नेताओं ने अपने-अपने प्रतिनिधियों को बैठक में भेजने की बात कही. साथ ही शरद पवार विपक्षी बिखराव रोकने को लेकर लगातार संपर्क में बने हुए हैं.
टीएमसी प्रमुख के इस दांव को राष्ट्रपति चुनाव के बहाने राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी सियासत को मजबूत करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस जाहिर तौर पर विपक्षी राजनीति की डोर ममता बनर्जी के हाथों में देने के लिए तैयार नहीं होगी. हालांकि, कांग्रेस इस बात को भी बेहतर तरीके से समझ रही है कि उसके नेतृत्व करने पर विपक्ष के कई दल साथ नहीं आएंगे. इसमें बीजेडी, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे दल हैं, जिनकी भूमिका राष्ट्रपति चुनाव में अहम है. ये दल कांग्रेस के साथ भले ही न आएं, लेकिन ममता के साथ खड़े होने में परहेज नहीं करेंगे. ऐसे में ममता ने इन चारों दलों के नेताओं बैठक में शामिल होने का न्योता भेजाकर बड़ा सियासी दांव चला है.
बहरहाल, चाहे मजबूरी में ही सही मगर विपक्षी एकता की खातिर कांग्रेस और वामदलों के बैठक में शामिल होने के संदेश के बाद ममता बनर्जी की बुधवार को प्रस्तावित बैठक राष्ट्रपति चुनाव पर विपक्ष की पहली औपचारिक मंत्रणा होगी. इसमें विपक्षी खेमे से साझा उम्मीदवार उतारने के लिए मंथन होगा. ममता के निकट होने के बावजूद तेलंगाना के मुख्यमंत्री के केसीआर बैठक में नहीं शामिल होंगे. इसी तरह से आम आदमी पार्टी और बीजेडी भी बैठक में शामिल नहीं होगी. अकाली दल ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है.
हालांकि, विपक्षी दलों की ओर से राष्ट्रपति चुनाव के लिए यह पहली बैठक है, जिसमें कांग्रेस से लेकर वामपंथी दल के नेता तो शामिल हो रहे हैं. वहीं, टीआरएस, आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस जैसे दलों के शामिल न होने से विपक्षी उम्मीदवार को लेकर जरूर झटका लगा है, लेकिन अगर ये दल मान जाते हैं और विपक्ष साझा उम्मीदवार उतारता है तो एनडीए के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है.