पाकिस्तान के न्यायिक इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि एक महिला पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनेगी। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला न्यायाधीश आयशा मलिक की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। उच्चस्तरीय न्यायिक समिति ने लाहौर हाईकोर्ट की न्यायाधीश आयशा मलिक की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति को मंजूरी दे दी।
दरअसल, अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी के दम पर आयशा मलिक पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश बनने जा रही हैं। देश के न्यायिक आयोग ने उनके नाम को मंजूरी दे दी है और अब संसदीय समिति से मंजूरी मिलने के बाद वह यह दर्जा हासिल कर लेंगी। यह बात सही है कि समिति से मंजूरी मिलने के बाद आयशा मलिक पाकिस्तान में एक ऐसा दर्जा हासिल कर लेंगी, जो वहां की महिलाओं के लिए किसी ख्वाब से कम नहीं है।
कौन हैं आयशा मलिक: तीन जून 1966 को जन्मी आयशा मलिक ने कराची ग्रामर स्कूल से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद कराची के ही गवर्नमेंट कालेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से स्नातक की उपाधि ली। इसके बाद कानूनी शिक्षा की तरफ उनका रुझान हुआ और लाहौर के कॉलेज ऑफ लॉ से डिग्री लेने के बाद उन्होंने अमेरिका में मेसाच्यूसेट्स के हॉवर्ड स्कूल ऑफ लॉ से एलएलएम (विधि परास्नातक) की पढ़ाई की। उन्हें 1998-1999 में ‘लंदन एच गैमोन फेलो’ चुना गया।
आयशा मलिक ने अपना करियर कराची में फखरूद्दीन जी इब्राहिम एंड कंपनी से शुरू किया और 1997 से 2001 तक चार साल यहीं गुजारे। अगले 10 बरसों में उन्होंने खूब नाम कमाया और कई मशहूर कानूनी फर्मों के साथ जुड़ी रहीं। 2012 में वह लाहौर उच्च न्यायालय में जज के तौर पर नियुक्त हुईं और कानून की दुनिया में एक बड़ा नाम बन गईं। अपने निष्पक्ष और बेबाक फैसलों के कारण अकसर चर्चा में रहने वाली आयशा की हालिया नियुक्ति का कुछ न्यायाधीशों और वकीलों ने विरोध किया है। उन्होंने आयशा की वरिष्ठता और इस पद के लिए उनकी योग्यता पर सवाल खड़े किए हैं।