गुजरात के विधानसभा चुनाव में अब महज 6 महीने का ही वक्त बचा है और उससे पहले पिछले दिनों ही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। आदिवासी नेता और तीन बार के विधायक अश्विन कोतवाल ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है। वह उन 13 मौजूदा और पूर्व विधायकों में से एक हैं, जो 2017 के बाद से अब तक कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। कोतवाल कांग्रेस के चीफ व्हिप भी रह चुके हैं और बीते कुछ वक्त से नाराज चल रहे थे। दरअसल वह नेता विपक्ष बनने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने एक अन्य आदिवासी नेता सुखराम राठवा को उनके स्थान पर चुन लिया। कोतवाल का कहना है कि वह आदिवासी इलाकों में कांग्रेस के काम करने के तरीके से निराश थे।
गुजरात कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता मनीष दोषी ने उनके पार्टी छोड़ने को लेकर कहा, ‘यह अवसरवाद और विश्वासघात की राजनीति है। कोतवाल जैसे लोग आदिवासियों के हितों के लिए काम करने की बात करते हैं, लेकिन ऐसे दल में शामिल हो जाते हैं, जो आदिवासी समुदायों के हितों के लिए कभी काम नहीं करती है।’ दरअसल भाजपा इस चुनाव को लेकर अभी से तैयारी में जुट गई और खासतौर पर आदिवासी समुदाय को साधने के प्रयास कर रही है। दरअसल गुजरात में आदिवासी समुदाय की अहम भूमिका रही है और उनके लिए विधानसभा में 27 सीटें आरक्षित हैं। कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनावों में इनमें से 15 पर जीत हासिल की थी, जबकि उसकी सहयोगी भारतीय ट्राइबल पार्टी को 2 सीटें मिली थीं। भाजपा को 9 सीटें मिली थीं।
ऐसे में भाजपा इस बार आदिवासी बेल्ट में भी पकड़ बनाना चाहती है ताकि कांग्रेस और आप को बैकफुट पर धकेला जा सके। कांग्रेस के विधायकों के पालाबदल के बाद अब आदिवासी इलाकों में भाजपा और कांग्रेस दोनों के 12-12 विधायक हैं। भाजपा के एक सीनियर नेता ने कहा, ‘2017 के चुनाव में सीआर पाटिल ने सूरत की सभी शहरी और अर्धशहरी इलाकों की 12 सीटों पर जीत का लक्ष्य तय किया था। ऐसी ही रणनीति इस बार वनवासी क्षेत्रों के लिए बनाई जा रही है।’ तब सीआर पाटिल सूरत के प्रभारी थे, लेकिन इस बार प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
पाटिल की रणनीति 2017 में कितनी कामयाब थी, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि सूरत की सभी 12 शहरी सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। इसके अलावा कुल 15 में से जिले की 14 सीटें जीत ली थीं। यह स्थिति तब थी, जबकि करीब डेढ़ साल पहले ही पाटीदार आंदोलन हुआ था। अब भाजपा आदिवासी बेल्ट में ऐसी ही चुनौती का सामना कर रही है और उसे 2017 के रिपीट होने की उम्मीद है। यहां तक कि भाजपा सरकार ने पिछले दिनों केंद्र से अपील की थी कि वह पार-तापी-नर्मदा परियोजना को रोक दे क्योंकि इससे बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापित करना पड़ेगा।
कोतवाल ने ऐसे वक्त में भाजपा जॉइन की है, जब आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने भरूच जैसे आदिवासी इलाके का दौरा किया है। उन्होंने ऐलान किया है कि आम आदमी पार्टी गुजरात में विधायक छोटू वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी के साथ मिलकर चुनाव में उतरेगी। बीटीपी ने 2017 में दो विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘दलित समुदायों की सीटों पर भाजपा अच्छा प्रदर्शन करती रही है। उसी तरह से आदिवासी सीटों पर भी एक मजबूत ट्राइबल नेता की जरूरत है।’